इस्त्मरारी बंदोबस्त, रैयतवारी बंदोबस्त , महलवरी प्रथा क्या है ?

अंग्रेजो को युद्ध का खर्च,ब्रिटिश शासन को मजबूत करना ,प्रसासनिक पदों और सेना की नियुक्ति और अपने उपनिवेशवाद के मंसूबो को साकार करने के लिए ब्रिटिशो को अत्यधिक धन की  आवश्यकता  थी, और कंपनी  को भारतीय राजस्व  की आवश्यकता थी। इसका मतलब था भारतीय किसानो के लिए करो में बढ़ोतरी।1813 तक जितने भी न्यायनिक या प्रशासनिक प्रणाली में बदलाव का मतलब ही करो में वृद्धि कर राजश्व बढ़ाना था।  मालगुजारी , इस्तमरारी बंदोबस्त ,रैयतवारी बन्दोबस्त महलवारी प्रथा  ऐसी कुछ व्यवस्था अंग्रेजो ने लागु की जिससे उन्हें कर वसूलने में आसानी हो और कृषि उतपादो का व्यवसायीकरण करके उनको  यूरोप में बेचकर अधिक मुनाफा कमाया जाये। 




मालगुजारी  - 

                       मालगुजारी का सीधा अर्थ किसानो से उनकी उपज का कुछा हिस्सा राज्य कर के रूप में लेता था, तो किसानो, रैयतों से कर संग्रह कर कंपनी तक पहुँचाने के लिए बिचोलियो की नियुक्ति कंपनी ने भी की।  यह प्रथा भारत में बहुत ही प्राचीन समय से चली आ रही थी । कंपनी के व्यापार और मुनाफ़ो  के लिए प्रशासन के खर्चो के लिए धन जुटाने का भार मुखयतः भारतीय किसानो अर्थत रैयतको ही उठाना पड़ता था। असल बात तो यह थी की अंग्रेज किसानो पर करो का भरी बोझ डाले बगैर भारत विजय कर ही नहीं सकते थे। एक लम्बे समय से भारत के शसक खेतिहार पैदावार का एक भाग जमीन की मालगुजारी के रूप मर लेते थे. यह मालगुजारी या तो कर्मचारी या सीधे सीधे ली जाती थी। जो लोग कास्तकारो। किसानो से मालगुजारी वसूल करने वाले बिचोलिये उसका एक भाग अपने कमीशन के रूप  में रख लेते थे। 

                                                                               वारेन हेस्टिंग ने मालगुजारी की वसूली के अधिकार को नीलामी पर लगाकर सबसे बड़ी बोली लगाने  वाले को देेेे दिए। पर यह प्रयोग सफल नहीं हुआ क्योंकि जमीदार तसेे  सटोरिए एक दूसरे से बढ़कर बोली लगते जिससे मालगुजार की रकम तो बड़ गई। परन्तु वास्तविक वसूूली प्रति वर्ष कम ज्यादा होने लगी।जिससे  कंपनी की आय अस्थिर होने लगी।

अंग्रेजो ने कर वसूली को लेकर जो नए प्रावधान लागु किये वो  इस प्रकार थे -

  • इस्त्मरारी बंदोबस्त 
  • रैयतवारी बंदोबस्त 
  • महलवरी प्रथा

इस्त्मरारी बंदोबस्त 

                            मालगुजारी की पुरानी व्यवस्था के चलते कंपनी की आय निश्चित  रहने लगी, कंपनी अब मालगुजारी या कर वसूली के लिए  एक निश्चित रकम निर्धारित करने पर विचार करने लगी।  लंबे विचार-विमर्श के बाद अंततः लॉर्ड कॉर्नवालिस ने 1793 बंगाल और बिहार में स्थाई बंदोबस्त की प्रथा का आरंभ किया।बिचौलियों को अब किसानों रैयतों से मालगुजारी की वसूली के लिए केवल सरकार के एजेंट का ही काम नहीं करना था, बल्कि अब वह अपने जमीदारी के इलाके की सारी जमीन के मालिक बन गए।  उनके स्वामित्व के अधिकार को वंशानुगत और हस्तांतरण  बना दिया गया।  दूसरी तरफ काश्तकारों का दर्जा गिर गया और अब वह बटाईदार होकर रह गए और वह जमीन पर अपने लंबे समय से चले आ रहे अधिकारों को पारंपरिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया।

                        जमीदारों को किसानों से जो भी लगान मिलता था उसका 10/11वा भाग उन्हें राज्य को दे देना पड़ता था और केवल 1/11 वा भाग अपने पास रख सकते थे।  लेकिन मालगुजारी की जो रकम उन्हें देनी थी, वह हमेशा के लिए निश्चित कर दी गई थी।  अगर काश्तकार का क्षेत्र बढ़ने या  खेती में सुधार आने के कारण या कास्तकारो से जबराम अत्यधिक वसूली  होने के कारण या किसी अन्य कारण से जमीदार की जागीर का लगान बढ़ जाए तो वह बढ़ी हुई रकम पूरी पूरी अपने पास रख सकता था। इसमें राज्य कभी भी कोई हिस्सा नहीं मांगता था साथ ही अगर किसी कारण से फसल नष्ट हो जाए तो भी जमीदार को मालगुजारी निश्चित तिथि को नियम पूर्वक चुकानी पड़ती थी, वरना उसकी जमीन बेच दी जाती थी। 

                       इस्तमरारी बंदोबस्त ने कंपनी की आय को बहुत अधिक बढ़ा दिया क्योंकि अब मालगुजारी की ऐसी दरें निर्धारित की गई जैसी जो पहले कभी भी नहीं थी।

रैयतवारी बंदोबस्त

                         दक्षिणी और पश्चिमी भारत में ब्रिटिश शासन के स्थापना से जमीन के बंदोबस्त की नई समस्याएं उठ खड़ी हुई अधिकारियों का मत था कि इन क्षेत्रों में बड़ी जागीरो वाले ऐसे जमीदार नहीं है, जिनके साथ मालगुजारी के बंदोबस्त किए जा सके और इसलिए वहां जमींदार प्रथा लागू करने से स्थिति उलट-पुलट हो जाएगी। 

                                                   रीट और मुनरो के नेतृत्व में मद्रास के अनेक अधिकारियों ने यह सिफारिश की कि सीधे वास्तविक काश्तकारों के साथ बंदोबस्त किया जाए उन्होंने यह भी बताया कि इस्तमरारी बंदोबस्त की प्रथा में कंपनी वित्तीय दृष्टि से घाटा उठा रही है, क्योंकि उन्हें मालगुजारी में जमीदारों को हिस्सा देना पड़ता था और वह जमीन से होने वाली आमदनी के बढ़ने पर उसमें से हिस्सा नहीं मांग सकती थी। 

                           रैयतवारी बंदोबस्त में काश्तकार जमीन के जिस टुकड़े को जोतता था  उसका  उस जमीन पर मालिकाना हक़  मान लिया जाता था।  शर्त यह थी कि वह उस जमीन की  मालगुजारी देता रहे।  रैयतवारी बंदोबस्त के समर्थकों का दावा था कि यह पहले से ही मौजूद व्यवस्था को ही जारी रखती थी मुनरो का कहना था यह वह प्रथा है, जो भारत में हमेशा ही रही है अतः 19 वी सदी के आरंभ में मद्रास और  मुंबई प्रेसिडेंट के कुछ भाग में रैयतवारी बंदोबस्त लागू किया गया। इस प्रथा के अंतर्गत कोई स्थाई बंदोबस्त नहीं किया गया तथा  प्रत्येक 20 - 30 वर्ष पर इसका पुनःनिर्धारण किया जाता था, तब आम तौर पर मालगुजारी बड़ा दी जाती थी।

किसानों ने भी जल्दी ही देख लिया कि अनेक जमींदारों की जगह एक दानवा का जमीदार की जगह ब्रिटिश राज्य ने ले ली है और अब  वह सरकार के बटाईदार मात्र है। जो नियम पूर्वक मालगुजारी ना भरे तो उनकी जमीनें बेच दी जाएगी वास्तव में आगे चलकर सरकार ने खुलकर यह दावा किया कि जमीन की मालगुजारी कोई कर ना हो कर लगान है।

महलवरी प्रथा

                                गंगा के दोआब  में पश्चिमोत्तर प्रांत के क्षेत्र और मध्य भारत के कुछ भागों में और पंजाब में जमींदारी प्रथा का एक संशोधित रूप लागू किया गया ,जिसे महालवारी  प्रथा कहा जाता है। इस व्यवस्था में मालगुजारी ( कर )की बंदोबस्त अलग-अलग गांव या जागीरो के आधार पर उन जमींदारों उन परिवारों के मुखिया के साथ किया गया जो सामूहिक रूप से उस गांव या महल का भूस्वामी होने का दावा करते थे। पंजाब में ग्राम प्रथा के नाम से जाने जानी वाली एक संशोधित महालवाड़ी प्रथा लागू की गई। महलवारी क्षेत्रों में भी मालगुजारी का समय समय पर पुनःनिर्धारण  किया जाता था।


हाल ही मे किसन आंदोलन बहुत चर्चा में है, जैसे की हम पहले मेरे लेख में ही कृषि कानून को समझ चुके है, की आखिर वह कौन  प्रावधान हे जिनकी  इतनी ठण्ड में भी डटे हुए है।  आपने मेरा पुराना  लेख नहीं पड़ा  निचे दी गयी लिंक पर क्लिक करके उन प्रावधानों को पड़  सकते है। 

आखिर कौन से वह प्रावधान है, जिन्हें लेकर किसान लगातार आंदोलन कर रहा है?


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आखिर कौन से वह प्रावधान है, जिन्हें लेकर किसान लगातार आंदोलन कर रहा है?

टिड्डियों का आतंक क्या खाद्य श्रंखला से खिलवाड़ करने का नतीजा है?

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