क्या वास्तव में हम चीन के सामान का बहिष्कार करके भारत को वैश्विक फैक्ट्री बना सकते हैं?




यहां हर मां बाप की इच्छा होती है कि उसका बच्चा सरकारी नौकरी में जाए और उसी सपने के दबाव में बच्चे सरकारी नौकरी की तरफ भेड़ चाल चलतेे हैं, फैमिली प्रेशर मैं उनके सपने दब जाते और यह सच्चाई है। अगर कोई किसी अच्छे प्लान पर आगे बढ़ता है, कोई इनोवेशन करता है। तो उसे कहा जाता है कि इतना दिमाग अगर पढ़ाई में लगाता  तो तू आईएएस बन जाता पढ़ाई क्यों नहीं करता?  पेरेंट्स अपनी अपेक्षाओं के बोझ से उसके आकांक्षाओं का गला घोट देते हैं।

क्या वास्तव में हम चीन के सामान का बहिष्कार करके भारत को वैश्विक फैक्ट्री बना सकते हैं?




भारत और चीन के बीच तनाव बहुत  गहराता जा रहा है, हाल ही में 49 चाइनीस ऐप को भारत सरकार ने प्रतिबंधित किया है । यह एक अच्छा प्रयास हो सकता है चीन को संकेत देने का हालांकि इससे कोई बहुत ज्यादा असर चीन को नहीं होगा। गलवान घाटी में जो हुआ उसमें हमारे 20 सैनिक शहीद हुए और चीन को भी काफी नुकसान हुआ उसके बाद लगातार मांग उठाई थी कि चीन के खिलाफ सख्त कदम उठाया जाए लेकिन हमारे देश में एक वर्ग से मांग उठ रही है कि चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया जाए कड़ा रूप का मतलब क्या हो सकता है? यकीनन युद्ध की शुरुआत कोई भी पक्ष नहीं करना चाहता ऐसे में 49 चाइनीस ऐप को बंद करना एक इनिशियल कदम है और एक संकेत है। भारत सरकार अब चीन के रिएक्शन का इंतजार कर रही है कि वह क्या रिएक्ट करता  हैं, इस पर उसके बाद ही अगली कोई कार्यवाही पर विचार होगा। हालांकि बॉर्डर पर सुरक्षा तो ठीक है जैसा कि मीडिया रिपोर्ट में बताया जा रहा है वहीं दूसरी ओर पूरी तरह से चाइनीस प्रोडक्ट को भारत में बैन करना डब्ल्यूटीओ वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन कि संधि के खिलाफ होगा। ऐसे में भारत सरकार एक तरफा व्यापार प्रतिबंध की कार्यवाही नहीं कर सकती और ना ही उस पर एक निश्चित राशि से ज्यादा टैक्स लगा सकती है । ऐसे में भारत की जनता चीनी सामानों का बहिष्कार कर दे तो अपने आप ही वहां से आयात में कमी होने लगेगी और यह काम भारत की जनता ही कर सकती है, सरकार नहीं । पर क्या यह संभव है?
कुछ दिनों पहले में एक इलेक्ट्रॉनिक शॉप पर गया मुझे कुछ तार खरीदना थे एक सज्जन व्यक्ति आए और उन्होंने मच्छर मारने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जो बैडमिंटन जैसा दिखता है वह मांगा दुकानदार ने वह दिखाया उसने पूछा  मेड इन चाइना तो नहीं है उसने कहा ये चाइना से ही बनकर आया है। उसने कहा कि नहीं मुझे यह नहीं चाहिए मुझे भारत का ही बना हुआ कुछ  उसने कहा सर ऐसी चीज भारत में बनती ही नहीं, उसने कहा कोई और चीज ऐसी बताओ जिससे मच्छरों से निजात मिल सके उससे और भी चीज बताई परन्तु कहीं ना कहीं हर सामान में चीन का माल उपयोग हो रहा था। सलाम है, उस देशभक्त व्यक्ति को  उसने मना कर दिया कि नहीं मुझे मच्छर मारने के लिए कुछ चाहिए ही नहीं वह बिना कुछ लिए वहां से चला गया। कारण क्या है, इसका? जैसा कि हम जानते हैं, चीन इतना आगे निकल गया कि हम उसका मुकाबला नहीं कर पा रहे।



कोरोना वायरस के कारण जैसे ही भारत में लॉकडाउन लगा  देशभर से मजदूरों के पलायन की बहुत ही दर्दनाक तस्वीरें सामने आने लगी वह सबसे ज्यादा दुखद और दर्द नाक हालत बिहार की नजर आई। एक छोटे से उदाहरण से मैं अपनी बात शुरू करना चाहूंगा भारत में सबसे ज्यादा आईएएस, आईपीएस किस राज्य में निकलते हैं? अब इसका जवाब तो सभी जानते हैं, बिहार सरकारी नौकरी में बिहार बाकी राज्यों से बहुत आगे है ।अब इसे बिहार के लिए गर्व की बात है या चिंता की बात है। दरअसल बिहार के पिछड़े होने का मुख्य कारण यही है कि वहां हर कोई प्रशासनिक सेवा में जाना चाहता है सरकारी नौकरी हो फिर चाहे वह चपरासी की ही क्यों ना हो कोई उद्योग के बारे में सोचता ही नहीं वहां बचपन से यही बताया जाता है। बिहार आईएएस आईपीएस की फैक्ट्री बनकर उभरा उसके अलावा और कोई उद्योग नहीं है। भारत म लगभग हर परिवार में   कुछ उच्च और धनी वर्ग के परिवारों को छोड़ दे तो अगर रिश्ते की बात चलती है, तो सबसे पहले देखा जाता है कि लड़के की सरकारी नौकरी है या नहीं उसके बाद आगे की बात की जा सकती है। लड़का अगर अच्छा इंजीनियर है किसी मल्टीनेशनल  कंपनी में लाखों के पैकेट में जॉब भी करता होगा तो लोगों के नजर में उसकी इतनी वैल्यू नहीं होगी जितनी सरकारी डिपार्टमेंट में एक चपरासी की होगी। यही कारण है कि हमारे देश में अगर कुछ हजार रेलवे की पोस्ट निकलेगी तो उसमें  लाखों लोग आवेदन करते है। यकीनन हमारे देश में हर साल कितने लोग सरकारी नौकरी के लिए आवेदन करते हैं जितने कि ऑस्ट्रेलिया या यूरोप की आबादी नहीं है, या उससे ज्यादा। असल में यह आंकड़ा बेरोजगारो का नहीं है यह आंकड़ा हमारे समाज का आईना है, क्योंकि यहां हर मां बाप की इच्छा होती है कि उसका बच्चा सरकारी नौकरी में जाए और उसी सपने के दबाव में बच्चे सरकारी नौकरी की तरफ भेड़ चाल और  गधों की रेस में दौड़ पड़ते हैं। उन लाखों लोगों में से कई हजारों लोग ऐसे भी होंगे जो इनोवेटिव होंगे जो रिसर्च डेवलपमेंट और इंडस्ट्री की की बात करते होंगे परंतु प्रेशर, सामाजिक दबाव फैमिली प्रेशर मैं उनके सपने दब जाते और यह सच्चाई है। अगर कोई किसी अच्छे प्लान पर आगे बढ़ता है, कोई इनोवेशन करता है। तो उसे कहा जाता है कि इतना दिमाग अगर पढ़ाई में लगात  तो तू आईएएस बन जाता पढ़ाई क्यों नहीं करता?  पेरेंट्स अपनी अपेक्षाओं के बोझ से उसके आकांक्षाओं का गला घोट देते हैं।




चीन से हम किस मामले में पीछे हैं चीन की ताकत उसकी आबादी है। हमारी भी आबादी चीन के लगभग बराबर है भारत दुनिया का सबसे ज्यादा युवा वर्ग का देश है। 130 करोड़ लोगों की आबादी में अगर हम यह कहें कि यहां टैलेंट नहीं है, तो मूर्खता होगी। क्योंकि अगर आप कचरे को भी छनेंगे तो उसमें से कुछ ना कुछ तो काम का निकल ही आएगा फिर तो हम 130 करोड़ लोग हैं। यहां करोड़ों लोग होंगे जो वास्तव में टैलेंटेड हैं।


चीन के माल का बहिष्कार करना चीन को पीछे छोड़ने का सपना यह एक दिन का काम नहीं है।क्योंकि पूरे इलेक्ट्रॉनिक मार्केट पर चीन का कब्जा है। और अधिकतर चीजें चीन से बनकर ही आती है, खिलौने हो या दिवाली पर लटकने वाली सीरीज बल्ब सजावट वाले सामान। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में यही हालत है, एप्पल हो या सैमसंग के पार्ट्स चीन में ही बनते हैं। दवाइयों के लिए रॉ मटेरियल अधिकतर  चीन से ही आता है। ऐसा नहीं है कि हम में क्षमता नहीं है ,परंतु हमने हमारी क्षमताओं को विकसित ही नहीं किया इसके लिए जरूरत है, हमें आज और अभी से काम पर लगने की हमें इनोवेशन, रिसर्च, डेवलपमेंट और इंडस्ट्री की बात करना ही पड़ेगी। इनके बारे में सोचना पड़ेगा और काम करना पड़ेगा। यह कैसी मूर्खता है, कि यहां के टैलेंटेड युवा ऑनलाइन चीन के सामान का बहिष्कार कर रहे हैं, लेकिन उसका विकल्प तैयार करने की बात कोई नहीं कर रहा हमारे यहां के इंजीनियर जॉब ढूंढने में लगे हैं या फिर सरकारी नौकरी की तैयारी में मुझे यह देखकर भी ताज्जुब होता है कि इस देश में प्रशासनिक सेवा में अधिकतर इंजीनियरों का ही चयन होता है। इंजीनियरिंग इसलिए की थी कि हम प्रशासनिक सेवा में जाएं दरअसल गलती उन युवाओं कि नहीं है, गलती हमारे समाज की है जिसने एक ऐसा माहौल तैयार कर रखा है कि आप के पास सरकारी नौकरी होगी तो ही आपको इज्जत मिलेगी। अगर समाज इस कुंठा से बाहर नहीं आ पाया तो जो होता आया है वह होता रहेगा और जब भी भारत-चीन सीमा पर तनाव होगा हम केवल बायकॉट चाइना , चीन के सामान का बहिष्कार करो, चीन की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करो जैसे जुमलो ही उपयोग कर सकते हैं और कुछ कुछ नहीं।




हमें भारत को वैश्विक फैक्ट्री बनाने की जरूरत है और इसका पूरा यहां के युवाओं को ही उठाना पड़ेगा भारत में बेरोजगारी इसलिए नहीं है कि यहां पर नौकरियां नहीं है। दरअसल यहां बेरोजगारी ज्यादा इसलिए है क्योंकि यहां का हर युवा सरकारी नौकरी में जाना चाहता है। और कुछ हद तक इसके लिए सरकार भी जिम्मेदार है क्योंकि वह इन युवाओं को अपने वोट बैंक के लिए इस्तेमाल करती है अभी तक वोट बैंक का शिकार हर वर्ग रहा है और अब युवा वर्ग भी हो रहा है बहुत सारी शासकीय योजनाएं चलती है मगर नौकरशाही और सरकार की उदासीनता के कारण वहां भी भ्रष्टाचार की कमी नहीं है। पुनः एक सवाल यहां यह उठता है, कि यह भ्रष्टाचारी अधिकारी आते कहां से अगर भारत का हर युवा शासकीय नौकरी प्रशासनिक सेवा में जाना चाहता है, तो भारत का नवनिर्माण कैसे होगा।क्या देश सेवा का मतलब यही होता है, कि बॉर्डर पर जाकर बंदूक चलाएं?


भारत के युवाओं को  प्रशासन के साथ-साथ औद्योगिक क्षेत्र में भी बढ़ने की जरूरत है। दुनिया में सबसे ज्यादा इंजीनियर भारत में ही होते हैं, क्या कारण है कि  हम भारत को वैश्विक फैक्ट्री नहीं बना सकते? जो इतने इंजीनियर बेरोजगार बैठे हैं और जॉब ढूंढ रहे हैं हम खुद ही इनोवेशन करके चीन का विकल्प तैयार क्यों नहीं कर सकते।



दो ही चीजों के कारण हम पीछे हैं, एक तो हमारा शिक्षा तंत्र और दूसरा हमारा सामाजिक तंत्र । शिक्षा तंत्र को सुधारना होगा साथ ही सरकारी नौकरी वाली सामाजिक मानसिकता को दिमाग से निकालना होगा, तो ही हम चीन का विकल्प हो सकते हैं अन्यथा हम केवल हम आयात पर ही निर्भर रहेंगे निर्यात नहीं।

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