आखिर कौन से वह प्रावधान है, जिन्हें लेकर किसान लगातार आंदोलन कर रहा है?

 हाल ही में कोरोना के चलते लॉकडाउन के दौरान देश भर से जमाखोरी की शिकायत आने लगी थी आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई बाधित नहीं होगी ऐसा सरकार का कहना था और ऐसा वास्तव में हुआ भी था कि कहीं भी किसी भी प्रकार की आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई में कोई कमी नहीं थी परंतु दुकानदारों और व्यापारियों ने अपने गोदाम में आवश्यक वस्तुओं की जमा खोरी शुरू कर दी थी और कोरोना काल में भी लोगों को सामान  मिल उचित दाम पर नहीं मिल पा रहा था कुछ समय  बाद जब धीरे-धीरे आवश्यक वस्तुओं के भाव बढ़ने लगे तो उन्होंने दोगुने हो 3 गुना ज्यादा में अपने सामान को बेचें।

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कृषि क्षेत्र से जुड़े नए कानूनों को वापस लेने के लिए सरकार पर दबाव बनाने के लिए किसानों के आंदोलन का आज 13 वां दिन है। आज 8 दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया गया है किसानों के भारत बंद को राजनीतिक दलों का समर्थन भी हासिल हुआ है हालांकि हमेशा यह डर रहता है कि कई मुद्दों को लेकर आम जनता समाजसेवी संस्था या किसानों के द्वारा किए जाने वाले आंदोलन को सामान्यतः राजनीतिक पार्टियां अपने अधिकार क्षेत्र में ले लेती है तथा उस आंदोलन की प्रासंगिकता को समाप्त कर देती है।

                                                           


                             


     हालांकि भारतीय किसान संघ ने अपने आप को इस आंदोलन से दूर रखा है।भारतीय किसान संघ का इस आंदोलन से दूर होना स्वाभाविक है, क्योंकि भारतीय किसान संघ को आर एस एस समर्थित माना जाता है हालांकि भारतीय किसान संघ का कहना है कि वह इस आंदोलन से स्वयं को दूर इसलिए कर रही है क्योंकि इसमें कई राजनीतिक पार्टियां जुड़ गई है और भारतीय किसान संघ स्वयं को राजनीतिक पार्टियों से दूर रखना चाहता है।


आखिर ऐसा क्या है कृषि कानून  में जिसके विरोध में किसान आंदोलन कर रहे हैं।

                                      पहले समझते हैं उन तीन कृषि कानून को जिसका विरोध लगातार किसान कर रहे है-

1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून 2020.

2. कृषक ( सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून 2020.

3. आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020.

यही वह तीन कानून है , जिन्हें वापस लेने के लिए किसान लगातार   आंदोलन करके सरकार पर दबाव डाल रहे हैं तो चलिए एक एक करके समझते हैं, आखिर क्या है? इन तीनों नियमों का अर्थ और क्या यह वास्तव में किसानों के हित में है या नहीं।


1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण कानून 2020 - 

        इस कानून के अंतर्गत एक ऐसी व्यवस्था बनाने का प्रावधान है जहां किसानों और व्यापारियों को राज्य की एपीएमसी ( agricultural produce Market committee) अर्थात जिसे हम सामान्यतः मंडियां कहते है, से बाहर फसल बेचने की आजादी होगी। अब कोई भी किसान अपनी फसल को एक राज्य से दूसरे राज्य में बिना किसी रोक-टोक के अपनी फसल बेच सकता है। 

      इस बिल में मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च कम करने की बात भी कही गई है ताकि किसानों को अच्छा दाम मिल सके। जैसा कि हम सभी जानते हैं आजकल भारत में डिजिटल इंडिया जैसे स्लोगन बहुत ही मशहूर हो गए हैं तो इसी कड़ी में किसानों की उपज बेचने के लिए एक सिस्टमैटिक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तैयार करने की बात भी कही गई है।




विश्लेषण - 

                 यह बात हमें सुनने में काफी अच्छी लग रही है कि किसान अब अपनी फसल कहीं भी बेचने के लिए स्वतंत्र है हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि अधिकांश किसान अपनी उपज आज भी मंडियों में नहीं बेचते हैं, हमारे देश के सिस्टम में इतना भ्रष्टाचार है कि जो किसान मंडियों में बेचते हैं उन्हें भी कई समस्याओं का क्या करना पड़ता है अधिकांश किसान मंडियों के बजाय साहूकारों बनियों और व्यापारियों को अपनी फसल कम दाम में बेच  देते है। कम दाम में फसल बेचने वाले अधिकांश छोटे और भूमिहीन किसान ही होते हैं।

   कुल मिलाकर भारत में कहीं भी फसल बेचने का फायदा केवल धनी किसानों और व्यापारियों को ही मिलेगा मूलतः छोटे किसानों और भूमिहीन किसानों को इस प्रावधान से कोई भी खास लाभ नहीं होने वाला साथ ही किसानों को इस बात का जरूर डर है, कि सरकार धीरे-धीरे इस प्रावधान के आड़ में  मंडियों में उपज खरीदना कम कर देगी और एमएसपी जिसे हम मिनिमम सपोर्ट प्राइस भी कहते हैं को खत्म कर देगी। 

इस प्रावधान में यह भी कहा गया है कि वह डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देगी जिससे कि किसान कहीं भी ऑनलाइन अपनी फसल को बेच सकता है, यह एक अच्छी पहल हो सकती है। कि कितना कारगर साबित होता है यह तो समय ही बताएगा। परंतु इसके साथ साथ हमें वेयरहाउस या इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के बारे में ज्यादा सोचना चाहिए क्योंकि हर साल हमारे देश में बारिश से फसलों का काफी नुकसान होता है।

2. कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून - 

                इस कानून में कृषि करारो (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) का उल्लेख किया गया है, इस कानून के तहत किसान कृषि व्यापार करने वाली प्रमुख प्रोसेसर , थोक व्यापारी, निर्यातकों या बड़े खुदरा विक्रेताओं के साथ कॉन्ट्रैक्ट करके पहले से तय एकदाम पर भविष्य में अपनी फसल बेच सकते हैं। इसके तहत किसान और बाजार के मध्य स्थित बिचौलियों को दरकिनार करके किसानों को उपज का अधिक से अधिक लाभ मिल सके। किसी भी विवाद  की में स्थिति में एक न्यायिक तंत्र की स्थापना की भी बात कही गई है।



विश्लेषण -

       निश्चित तौर पर इसमें कोई शक नहीं है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों को फायदा  होगा बेशक इससे किसानों को फायदा होगा परंतु इसका दूसरा पहलू भी है, जिसे हम अनदेखा कर रहे कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के आड़ में कहीं कृषि का भी व्यावसायिकरण ना हो जाए यही चिंता का विषय है। इस प्रावधान में एक कमी  नजर आती है , किसानों और व्यवसायियों के मध्य किसी भी विवाद की स्थिति से निपटने के लिए एक निकाई की की स्थापना की जाएगी जो सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी होगा। अब हमारे देश के अधिकारियों और भ्रष्टाचार की तो मिसले दी जाती है। क्या वहां किसानों और उद्योगपतियों के बीच उत्पन्न विवाद में  किसानों को न्याय मिल सकेगा?

3. आवश्यक वस्तु संशोधन कानून 2020 - 

                 इस कानून में अनाज दलहन, तिलहन, खाद्य तेल प्याज और आलू जैसी अनेक आवश्यक वस्तुओं को आवश्यक वस्तु की सुची से हटाने का प्रावधान है। इसका अर्थ यह हुआ कि सिर्फ युद्ध जैसी  असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर अब जितना चाहे  वस्तुओं का भंडारण किया जा सकता है।



विश्लेषण- 

        उपरोक्त दोनों कानून को एक हद तक ला सकते हैं परंतु आवश्यक वस्तु संशोधन कानून को बदलना समझ से परे है। एक छोटे से उदाहरण से इस चीज को हम समझते हैं हाल ही में कोरोना के चलते लॉकडाउन के दौरान देश भर से जमाखोरी की शिकायत आने लगी थी आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई बाधित नहीं होगी ऐसा सरकार का कहना था और ऐसा वास्तव में हुआ कि था कि कहीं भी किसी भी प्रकार की खाद्य और आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई में कोई कमी नहीं थी। परंतु दुकानदारों और व्यापारियों ने अपने गोदाम में आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी शुरू कर दी थी और कोरोना काल में भी लोगों को सामान नहीं मिल पा रहा था उस समय बाद जब धीरे-धीरे आवश्यक वस्तुओं के भाव बढ़ने लगे तो उन्होंने दोगुने हो 3 गुना ज्यादा काम में अपने सामान को बेचें।

     हालांकि इसमें एक फायदा और है, आपने एक चीज तो देखी होगी कि हमारे देश में वर्षा काल में बहुत सारी फसलें खराब होती है क्योंकि हमारे देश में उन फसलों को सुरक्षित रखने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव है। मूलभूत सुविधाओं को बनाने में सरकार निजी क्षेत्र से सहयोग की अपेक्षा रखती है।

हालांकि सरकार इस कानून के कितने ही फायदे गिनाए परन्तु किसान इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं है ,कि वास्तव में यह कानून उनके लिए हितकारी है। और किसानों कि समस्या वास्तविक है। जिसे सुना जाना चाहिए हम आम नागरिकों को भी किसानों की भावनाओ को समझना चाहिए ये केवल आश्वासन चाहते है  की  एमएसपी बरकरार रहेगा, एमएसपी को लेकर प्रावधान स्पष्ट करना चाहिए। 

प्याज महंगा होता है तो हम किसी जिम्मेदार  ठहराते है? प्याज आलू 200 रुपये किलो मिलता है पर किसान को उसके 2 रुप्ये तक कभी-कभी 50 पैसे भी नहीं मिल पाते। 

तीनों प्रावधानों में से आवश्यक वस्तु अधिनियम भंडारण अधिनियम और एमएसपी पर सरकार को किसानों कि समस्या का निवारण करना चाहिए।

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