टिड्डियों का आतंक क्या खाद्य श्रंखला से खिलवाड़ करने का नतीजा है?


"टिड्डीदल की जो मौजूदा समस्या है असल पर वह हमारे द्वारा खाद्य श्रृंखला और प्रकृति से खिलवाड़ करने का नतीजा है खाद्य श्रृंखला से मतलब प्रकृति से ऐसे जीवो का खात्मा करना जो इन कीड़ों को खाते हैं। अगर हम अब भी प्रकृति से खिलवाड़ करना बंद नहीं किया तो कोरोना और टिड्डी तो इसके केवल एक उदाहरण है कई समस्याएं तो अभी और आना बाकी है।"


आजकल पूरी दुनिया में अनिश्चितता का माहौल है और हो भी क्यों ना कई ऐसी विकट परिस्थितियां निर्मित हुई है, जिससे कि हमारे वजूद पर सवालिया निशान लगा दिया और उसमें सबसे बड़ा कोरोना वायरस है । अगर देखें तो तृतीय विश्वयुद्ध  की आहट भी धीरे-धीरे सुनाई देने लगी इन सब से हटकर एक और समस्या के बारे में आज मैं बात करना चाहूंगा वह टिड्डी जी हां एक छोटा सा कीड़ा कोई दो 2 से 4 इंच बड़ा। आखिर टिड्डियों से इतनी बड़ी समस्या कैसे खड़ी हो गई क्या पहले भी यह होता था जी हां इस तरह की घटनाएं  तो सामान्य है वह प्रकृति का हिस्सा भी है परंतु मौजूदा हालात में इसे सामान्य घटना नहीं कहा जा सकता और यह प्राकृतिक नहीं  है क्योंकि कहीं ना कहीं इस तरह की घटनाएं जब निश्चित अनुपात से ज्यादा घटित और विकराल होने लगती है तो कहीं ना कहीं यह प्राकृतिक असंतुलन के कारण हुई घटना से इनकार नहीं किया जा सकता।



 पिछले कुछ दिनों में एशिया और अफ्रीका महाद्वीप के एक दर्जन से अधिक देशों में टिड्डी दल (locust swarms) ने फसलों पर हमला किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि तीन क्षेत्रों यथा-अफ्रीका का हॉर्न क्षेत्र, लाल सागर क्षेत्र, और दक्षिण-पश्चिम एशिया में स्थिति बेहद चिंताजनक है। अफ्रीका का हॉर्न क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्र है। इथियोपिया और सोमालिया से टिड्डी दल दक्षिण में केन्या और महाद्वीप के 14 अन्य देशों में पहुँच चुके हैं। लाल सागर क्षेत्र में सऊदी अरब, ओमान और यमन पर टिड्डियों के दल ने हमला किया है, तो वहीँ दक्षिण पश्चिम एशिया में ईरान, पाकिस्तान और भारत में टिड्डियों के झुंडों ने फसल को भारी नुकसान पहुँचाया है। फिलहाल भारत टिड्डियों के दल ने भी बहुत तबाही मचाई है, चिट्टियां यूं तो किसी भी प्रकार की जान का नुकसान नहीं करती परंतु यह आर्थिक रूप से कृषि को बहुत ही बुरी तरह से क्षति पहुंचाती है। एक टिड्डी दल कई हजार लोगों का भोजन कुछ ही घंटों में चट कर सकता है।
यूं तो सामान्य तौर पर टिड्डी भारत में भी पाई जाती है परंतु यह जो दल है यहां अफ्रीका से चलकर सऊदी अरब ईरान पाकिस्तान होते हुए भारत की तरफ रुख किया है अब भारत को हम इस के आखिरी पड़ाव के रूप में भी देख सकते हैं क्योंकि इसके उत्तर में हिमालय पर्वत है जिसे पार करके चाइना की तरफ रुख करना इसके लिए असंभव है वही उत्तर पूर्व मैं भी पहाड़ी इलाका होने के कारण उसे पार करके दक्षिण पूर्व एशिया में प्रवेश करना भी लगभग ना के बराबर संभावना है, यह दल भोजन खाकर प्रजनन करते हैं और आगे बढ़ जाते हैंइसके फलस्वरूप कई और दल उसी गुणित अनुपात में बनने लगते है। आइए जानने की कोशिश करते हैं टिद्दियो के बारे में और यह समस्या इतनी विकराल कैसे हुई।

टिड्डीया


मुख्यतः टिड्डी एक प्रकार के उष्णकटिबंधीय कीड़े होते हैं जिनके पास उड़ने की अतुलनीय क्षमता होती है जो विभिन्न प्रकार की फसलों को नुकसान पहुँचाती हैं।टिड्डियों की प्रजाति में रेगिस्तानी टिड्डियाँ (Schistocerca gregaria) सबसे खतरनाक और विनाशकारी मानी जाती हैं।आमतौर पर जुलाई-अक्तूबर के महीनों में इन्हें आसानी से देखा जा सकता है क्योंकि ये गर्मी और बारिश के मौसम में ही सक्रिय होती हैं।अच्छी बारिश और परिस्थितियाँ अनुकूल होने की स्थिति में ये तेज़ी से प्रजनन करती हैं। उल्लेखनीय है कि मात्र तीन महीनों की अवधि में इनकी संख्या 20 गुना तक बढ़ सकती है।


टिड्डीया का  निवास


इनके निवासस्थान उन स्थानों पर बनते हैं जहाँ जलवायु असंतुलन होता है और निवास के स्थान सीमित होते हैं। इन स्थानों पर रहने से अनुकूल मौसम और भोजन इनकी सीमित संख्या को संलग्न क्षेत्रों में फैलाने में सहायक होती है।क्योंकि सीमित निवास स्थान होने के पश्चात इन्हें नए स्थान की जरूरत होती है जिससे कि यह अपने क्षेत्र से उन क्षेत्र में प्रवेश करने लगते हैं जहां इनकी भोजन की जरूरत पूरी हो ।प्रवासी टिड्डी के उद्भेद (outbreak) स्थल चार प्रकार के होते हैं:

1. कैस्पियन सागर, ऐरेल सागर तथा बालकश झील में गिरनेवाली नदियों के बालू से घिरे डेल्टा,

2. मरूभूमि से संलग्न घास के मैदान, जहाँ वर्षण में बहुत अधिक विषमता रहती है, जिसके कारण टिड्डियों के निवासस्थान में परिवर्तन होते रहते हैं;

3. मध्य रूस के शुष्क तथा गरम मिट्टी वाले द्वीप, जो टिड्डी के लिए नम और अत्यधिक ठंडे रहते हैं। इस क्षेत्र में तभी बहुत संख्या में टिड्डियाँ एकत्र होती हैं जब अधिक गर्मी पड़ती है तथा

4. फिलिपीन के अनुपयुक्त, आर्द्र तथा उष्ण कटिबंधीय जंगलों को समय समय पर जलाने से बने घास के मैदान।



वयस्क यूथचारी टिड्डियाँ गरम दिनों में झुंडों में उड़ा करती हैं। उड़ने के कारण पेशियाँ सक्रिय होती हैं, जिससे उनके शरीर का ताप बढ़ जाता है। वर्षा तथा जाड़े के दिनों में इनकी उड़ानें बंद रहती हैं। मरुभूमि टिड्डियों के झुंड, ग्रीष्म मानसून के समय, अफ्रीका से भारत आते हैं और पतझड़ के समय ईरान और अरब देशों की ओर चले जाते हैं। इसके बाद ये सोवियत एशिया, सिरिया, मिस्र और इजराइल में फैल जाते हैं। इनमें से कुछ भारत और अफ्रीका लौट आते हें, जहाँ दूसरी मानसूनी वर्ष के समय प्रजनन होता है।

लोकस्टा माइग्रेटोरिया (Locusta Migratoria) नामक यह टिड्डी एशिया तथा अफ्रीका के देशों में फसल तथा वनस्पति का नाश कर देती है।

खाद्य श्रृंखला और टिड्डी दल


प्रकृति में बहुत सारे जीव जंतु कीट पतंगे पाए जाते हैं उस सभी कहीं ना कहीं एक दूसरे का भोजन है जिससे कि खाद्य श्रृंखला बनी रहती है यदि इस खाद्य श्रंखला में से किसी भी एक जीव को हटा दे तो खाद्य  श्रंखला बहुत बुरी तरह से प्रभावित होगी। जीव एक  दूसरे जीव को खा कर उसकी संख्या को नियंत्रित करता है। अब अगर हम बात करें भारत में तो जहां पर बहुत सारे पक्षियों विलुप्त हो गए हैं जो की टिद्दियों को अपना भोजन बनाकर उन्हें नियंत्रित करते थे यही सबसे बड़ी समस्या है शायद इस बारे में कोई बात नहीं करता। गोरैया एक ऐसी चिड़िया जिसे आज से 10 साल पहले बहुत देखा जाता था परंतु आजकल वह बहुत ही जल्द ही  लगभग लुप्त हो गई कई छोटे-छोटे कीड़ों का भोजन करते थे कबूतर कव्वे और भी न जाने कितने ऐसे पक्षी है जो ऐसे छोटे कीड़ों को खा कर इनकी संख्याओं सीमित रखते है यही खाद्य श्रंखला कहीं ना कहीं हमने इसे बहुत बुरी तरह से प्रभावित किया है। इसका नतीजा प्राकृतिक रूप से हमें दिखाई देता है, कभी ग्लोबल वार्मिंग के नाम पर हम तापमान बढ़ने के बात करते हैं तो कभी भूकंप और बाड यह भी प्रकृति का संतुलन का ही हिस्सा है जब यहां खाद्य श्रृंखला प्रभावित होती है तो इस प्रकार की समस्या बढ़ जाती है जैसे कि अभी तिद्दियों की समस्या है एक समय था। जब ऑस्ट्रेलिया में चूहों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई थी क्योंकि वहां पर कई हिस्सों में सांप लगभग खत्म हो गए थे चीन में 1960 के बाद एक भयानक अकाल पड़ा था उसका कारण भी खाद्य श्रृंखला से और प्रकृति से खिलवाड़ करना ही था। माओत्से तुंग ने चीन में जीवन को आधुनिक बनाने और बेहतर बनाने के प्रयास में कई बड़े अभियान चलाए। चार कीट अभियान इन ड्राइवों में से एक था, 1958 और 1962 के बीच ग्रेट लीप फॉरवर्ड का हिस्सा। सभी चिड़िया को मारना इस अभियान का हिस्सा था
पक्षियों को मिटाने के लिए लोगों को जुटाया गया। उन्होंने पक्षियों को उतरने से डराने के लिए ढोल पीटने का इस्तेमाल किया, जब तक कि वे थकावट से मर नहीं जाते, उन्हें उड़ने के लिए मजबूर किया। लोगों ने चिड़िया के घोंसले को गिरा दिया और आकाश से नीचे गोली मार दी। अभियान का परिणाम चीन में विलुप्त होने के करीब पक्षियों को धकेलना था।

1958 में चीन में कितने चिड़िया थे, इसकी कोई जानकारी नहीं है। लेकिन अगर प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक होता, तो 600 मिलियन से अधिक होते। लाखों लोग मारे गए। इससे अगले साल समस्या हो सकती है। यह देखा गया कि फसल के खेतों में कीटों का संक्रमण बढ़ गया था। चिड़िया ने टिड्डों जैसे कीटों को खा लिया और अभियान के बाद टिड्डियों ने अपने प्रमुख शिकारी को खो दिया। इसका मतलब यह था कि चिड़िया को मारना प्रति-उत्पादक था। गौरैया, ऐसा लगता है कि वह केवल अनाज के बीज नहीं खाती है। उन्होंने कीड़े भी खाए।




टिड्डी आबादी उफान पर थी और उन्होंने अपने रास्ते में सब कुछ खा लिया। अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में अनाज का उत्पादन ढह गया और बड़े पैमाने पर अकाल शुरू हुआ। लोग खाने के लिए चीजों से बाहर भाग गए और लाखों लोग भूखे रह गए। चीनी सरकार से घातक संख्या की आधिकारिक संख्या 15 मिलियन थी। हालांकि, कुछ विद्वानों द्वारा यह अनुमान लगाया गया था कि घातक संख्या 45 या 78 मिलियन थी।


अब अगर भारत की ही बात करें तो लगभग गोरिया और कई ऐसे पक्षी जो आज से 10 साल पहले दिखाई देते थे लगभग अब दिखाई देना बंद हो गए हैं क्योंकि पेड़ और जंगल है नहीं जिसकी वजह से इनकी आबादी को पूरी तरह प्रभावित हुई। बस यही हालत पूरी दुनिया में है जिसके परिणाम स्वरूप बहुत सारी चीजें देखने को मिलती है पेड़ कटने के कारण बहुत सारी चिड़िया और और कीड़ों की आबादी कम हो रही है जो कि हमारी खातिर संखला का अहम हिस्सा है जंगल कम होने की वजह से जंगली जानवर पर भी असर पड़ रहा है उनके रहने के लिए जगह कम पड़ गई तथा उनके भोजन की पूर्ति भी अब जंगल में पूरी नहीं हो पा रही है यही कारण है कि बहुत सारे जंगली जानवर हमारे शहरों में घुस आते हैं परंतु इसमें गलती उन जानवरो की नहीं है गलती तो हमारी है जिन्होंने उनके घरों पर कब्जा करके उनका भोजन भी हमने छीन लिया।



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