मकर संक्रांति और उत्तरायण,उत्तरायण और मकर संक्रांति अलग क्यों है !


मकर संक्रांति और उत्तरायण

14  जनवरी इस तारीख से तो हम सब बचपन से ही वाकिफ है, पतंगबाजी का जो नजारा 90 के दशक में दिखाई देता था आज वो दिन खो से गए है। आज से दस साल पहले  तक भी  लगता था की पतंगबाजी भी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है दीवाली की समाप्ति के साथ ही पतंगबाजी की शुरुआत हो जाती थी, जो की होली तक पतंगबाजी का माहौल बना रहता था। आज कल तो मोबाइल इंटरनेट के ज़माने में पतंगबाजी धूमिल सी हो गयी है। इसमें कोई शक नहीं की ये   त्यौहार  मस्ती  और उल्लास का है। 


 संक्रांति से सम्बंधित कई लेख आपने पड़े होंगे  आपको  बताऊंगा  आप पहले से जानते है, आप सोच रहे होंगे की मकर संक्रांति बारे मे कौन नहीं जनता उत्तरायण, माघ ,तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं। मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं, यह भ्रान्ति है कि उत्तरायण भी इसी दिन होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति उत्तरायण से भिन्न है। क्या मकर संक्रांति और उत्तरायण अलग अलग है ? पर हमें तो  यही बताया है , और सभी न्यूज़ चैनल वाले  मकर संक्रांति  उत्तरायण  महत्त्व बड़े ही धूमधाम धूम धाम से बताते है  धार्मिक महत्त्व पर विभिन्न अखबारों मे लेख जाते है। 

आप गलत सोच  है मै यहाँ किसी की धार्मिक भावनाओ को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता बस एक भ्रान्ति हे की संक्राति और उत्तरायण एक ही है। बस आज हम  ही समझने की कोशिश करते है की उत्तरायण और संक्रांति अलग क्यों है। 



अगर में आपको एक सवाल करू की सूरज की गति की दिशा क्या है, अजीब सवाल है, कोन नहीं जनता बच्चा भी बता देगा की सूर्य पूरब में उगता हे और पश्चिम में अस्त होता है। बहुत लोग यह भी जानते होंगे कि सूर्य उत्तर और दक्षिणी में भी गमन करता है, क्या आप नहीं जानते ? कोई बात नहीं आईये समझते हैं। हम कुछ सामान्य ज्ञान की बाते कर ले ताकि तथ्य समझाना आसान हो जाए।


गोलार्द्ध 

भूमध्य रेखा 

               भूमध्य रेखा पृथ्वी की सतह पर उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव से सामान दूरी पर स्थित एक काल्पनिक रेखा है। यह पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध में विभाजित करती है। दूसरे शब्दों में पृथ्वी के केंद्र से सबसे दूरस्थ भूमध्यरेखीय उभार पर स्थित बिंदुओं को मिलाते हुए ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खींची गई कल्पनिक रेखा को भूमध्य या विषुवत रेखा कहते हैं। इस पर वर्ष भर दिन-रात बराबर होतें हैं, सूर्य अपनी सामयिक चाल में आकाश से, वर्ष में दो बार, 21 मार्च और 23 सितंबर को भूमध्य रेखा के ठीक ऊपर से गुजरता है। इन दिनों भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें पृथ्वी की सतह के एकदम लम्बवत पड़ती इस रेखा के उत्तरी ओर 23 है ° में कर्क रेखा है और दक्षिणी ओर 23 में ° में मकर रेखा है।

कर्क रेखा

              21  जून को जब सूर्य इस रेखा के एकदम ऊपर होता है, उत्तरी गोलार्ध में वह दिन सबसे लंबा व रात सबसे छोटी होती है। यहां इस दिन सबसे अधिक गर्मी होती है (स्थानीय मौसम को छोड़कर), क्योंकि सूर्य की किरणें यहां सटीक लंबवत पड़ती हैं। इस समय कर्क रेखा पर स्थित क्षेत्रों में परछाईं एकदम नीचे छिप जाती हैं या कहें कि नहीं बनती है। इस कारण से इन क्षेत्रों को नो शैडो ज़ोन कहा गया है।

मकर रेखा 

                २२ दिसंबर को सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत चमकता है। मकर रेखा पृथ्वी की दक्षिणतम अक्षांश रेखा हैं, जिनमें से सूर्य सूर्य के समय लम्बवत चमकता हैं। यह घटना दिसंबर संक्रांति के समय होती है। जब दक्षिणी गोलार्ध सूर्य के बराबर अत्यधिक झुक जाता है। उत्तरी गोलार्ध में कर्क रेखा उसी भांति है, जैसे दक्षिणी गोलार्ध में मकर रेखा। मकर रेखा के दक्षिण में स्थित अक्षांश, दक्षिण शीतोष्ण क्षेत्र मे आते हैं।  



अब आप ये तो समझ ही गए होंगे की उत्तरायण का मकर संक्रांति  सम्बन्ध नहीं परन्तु एक बात और कही जाती हे की इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है,तो क्या यह बात भी गलत ही होगी ? जी नहीं सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना और मकर रेखा पर होना दोनों अलग अलग घटनाये है। 

प्राचीन खगोल विज्ञानं और ज्योतिष शास्त्र -

                                                         हम मकर रेखा के बारे में तो बहुत जान चुके हे अब जानते हे मकर राशि के बारे में। हमारे प्राचीन ज्ञान के आधार पर बात ये तो हम  जानते ही होंगेकी प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान काफी विकसित हो गया था। यहाँ  खगोल विज्ञानकी बात करना चाहूंगा ,कई लोगो के मन में भारतीय खगोल विज्ञानं की बात आते ही मन में ज्योतिष शास्त्र आ जाता है।  स्पष्ट हे ज्योतिष शास्त्र खगोल विज्ञानं पर आधारित हे, जो कथित तौर पर  कर्म ,भग्य ,गुण ,दोष का हिसाब रखता है परन्तु यह प्रामाणिक  नहीं है और हमने हमारे प्राचीन खगोल विज्ञान के ज्ञान को भाग्य से जोड़ दिया जो कि गलत है। तो बात करते है राशि की 12 रशिया होती है ये तो हम सभी जानते है ,परन्तु ये रशिया क्या होती है ?

राशियां - 

               राशियाँ राशिचक्र के उन बारह बराबर भागों को कहा जाता है जिन पर ज्योतिषी आधारित है। हर राशि सूरज के क्रांतिवृत्त (ऍक्लिप्टिक) पर आने वाले एक तारामंडल से सम्बन्ध रखती है और उन दोनों का एक ही नाम होता है - जैसे की मकर तारामंडल या मकर राशि। यह बारह राशियां हैं -

  1. मेष राशि
  2. वृष राशि
  3. मिथुन राशि
  4. कर्क राशि
  5. सिंह राशि
  6. कन्या राशि
  7. तुला राशि
  8. वॄश्चिक राशि
  9. धनु राशि
  10. मकर राशि
  11. कुम्भ राशि
  12. मीन राशि

इन बारह तारा समूह ज्योतिष के हिसाब से महत्वपूर्ण हैं। यदि पृथ्वी, सूरज के केन्द्र और पृथ्वी की परिक्रमा के तल को चारो तरफ ब्रम्हाण्ड में फैलायें, तो यह ब्रम्हाण्ड में एक तरह की पेटी सी बना लेगा। इस पेटी को हम १२ बराबर भागों में बांटें तो हम देखेंगे कि इन १२ भागों में कोई न कोई तारा समूह आता है। हमारी पृथ्वी और ग्रह, सूरज के चारों तरफ घूमते हैं या इसको इस तरह से कहें कि सूरज और सारे ग्रह पृथ्वी के सापेक्ष इन १२ तारा समूहों से गुजरते हैं। यह किसी अन्य तारा समूह के साथ नहीं होता है इसलिये यह १२ महत्वपूर्ण हो गये हैं। इस तारा समूह को हमारे पूर्वजों ने कोई न कोई आकृति दे दी और इन्हे राशियां कहा जाने लगा।


मकर राशि और मकर रेखा में अंतर 


मकर संक्रांति - 

                          जब हम यह कहते हे की सूर्य सूर्य मकर रेखा पर होता हे तो ये  है। इस दिन सूर्य  होता हे क्यूंकि हम पहले ही समझा चुके हे की कैसे 22 दिसंबर को सूर्य मकर रेखा पर होता है।  तो अब यह स्पष्ट  दिन सूर्य मकर राशि में  है। या यूँ कहे की जिस  पृथ्वी पर काल्पनिक भूमध्य रेखा , कर्क , और मकर रेखा को आधार मानकर पृथ्वी का अध्ययन किया जाता हे वैसे ही आसमानके भी नक्शा तारामंडल ( तारो के समूहों ) के आधार  है।  प्राचीन पंचांग इसी  निर्मित किये जाते थे। 

मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है -

                                         इस   दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।  परन्तु वास्तव में प्रत्येक सभ्यता में त्यौहार खुशी के प्रतिक के रुप  में मनाये जाते है।  मकर संक्रांति के समय भी देश भर में नई फसल के आगमन पर उसे उत्सव के रूप में देश के विभिन्न भगो में  संक्रांति को अलग अलग नाम से मनाया जाता है 



विभिन्न नाम भारत में

  • मकर संक्रांति (संक्रांति) :- छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, गुजरात और जम्मू
  • ताइ पोंगल, उज़्वर तिरुनल :-  तमिलनाडु 
  • उत्तरायण :- गुजरात, उत्तराखण्ड
  • माघी :-  हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब
  • भोगाली बिहु :- असम
  • ससुर संवेदक: कश्मीर घाटी
  • खिचड़ी: उत्तर प्रदेश और पश्चिमी बिहार
  • पौष संक्रांति: पश्चिम बंगाल
  • परिवर्तन: कर्नाटक
  • लोहड़ी: पंजाब

    विभिन्न नाम भारत के बाहर


  • बांग्लादेश: शकरन / पलाश संक्रांति
  • नेपाल: माघे संक्रांति या 'माघी संक्रांति' 'खिचड़ी संक्रांति'
  • थाईलैण्ड: लैण्डานต์ सोंक्करन
  • लस: पि मा ह
  • म्यांमार: थिनयान
  • कम्बोडिया: मोहा संगक्रान
  • श्री लंका: पोंगल, उज़्वर तिरुनल



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