Geminid Meteor Shower 2020: उल्का पिंडो की बौछार से जगमगाएगा आकाश ।

बचपन में हम सब को  जब भी आसमान में कोई तेज गति से गुजरती हुई रोशनी नजर आती थी, तो हमारे मुँह से एक ही शब्द निकलता " टूटता तारा " खेर वो बचपन की बात थी।  आज हम वास्तविकता जानते हे ये कोई टूटता तारा हो नहीं हो सकता क्यूंकि तारे हमारी पृथ्वी से कई गुना हजारो, लाखो गुना बड़े भी हो सकते हे तो ये तो अब असम्भव रहा कि तारा टूटकर  पृथ्वी पर गिरे। हममे से कई लोग जानते होंगे की ये वास्तव में उल्कापिंड  (meteorite)  होते हे। उल्कापिंडो  (meteorite)का धरती पर गिरना सामान्य खगोलीय घटना हे।

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 देशभर में आज रात और सोमवार तड़के उल्का पिंडों की बौछार से आकाश जगमगा उठेगा।  अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (NASA) की एक रिपोर्ट के अनुसार पीक ऑवर्स के दौरान प्रति घंटे में 120 जेमिनीड उल्कापिंडों को देखा जा सकता है।‘जैमिनिड’ के नाम से जानी जाने वाली उल्का पिंडों (Meteor) की यह बौछार 13 दिसंबर की रात को चरम पर होगी। यह वर्ष की सबसे बड़ी उल्का पिंड बौछार होगी. उन्होंने कहा कि अगर आसमान में परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं, तो जेमिनिड उल्का पिंड बौछार को भारत के हर हिस्से से देखा जा सकेगा। 

                                              



उल्कापिंड  (meteorite) किसे कहते हैं? 

                                    आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं, उन्हें उल्का और साधारण बोलचाल में 'टूटते हुए तारे' अथवा 'लूका'  या उल्का कहते हैं अंतरिक्ष में भ्रमण करते समय  क्षुद्रग्रह अक्सर एक दुसरे से टक्कर करते रहते हैं और टक्कर के दौरान ही छोटे-छोटे अवशेषों में टूट जाते हैं ये इस रूप में भ्रमण करते हैं, जैसे की सौर प्रणाली के अंग हों. उल्लेखनीय है की उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड कहते हैं।



 अधिकांश उल्कापिंड  (meteorite) चट्टानी संरचना के बने होते हैंऔर आकर में अत्यंत छोटे होते हैं अधिकांशत: लोहे, निकल या मिश्रधातुओं से बने होते हैं, और कुछ सिलिकेट खनिजों से बने पत्थर सदृश होते हैं कभी-कभी इनका आकार एक बास्केटबॉल से भी बड़ा होता हैइनकी संरचना में विविधता पाई जाती है ,जिसकी वजह से उल्कापिंडों का  वर्गीकरण उनके संगठन के आधार पर किया जाता है कुछ पिंड धात्विक और कुछ आश्मिक उल्कापिंड कहे जाते हैं. इसके अतिरिक्त कुछ पिंडों में धात्विक और आश्मिक पदार्थ प्रायः सामान मात्र में पाए जाते हैं, उन्हें धात्वाश्मिक उल्कापिंड कहते हैं। 

उल्कापिंड (meteorite) कहाँ से आते हैं ?

                                     अब आप इतना तो समझ ही गए होंगे की ऐसे खगोलीय सूक्ष्म पत्थर जिनका आकर बहुत छोटा होता हे, जो धरती के वायुमंडल में ही जलकर ख़त्म हो जाते हे और एक चमक के साथ अद्भुत नजारा आसमान में उत्त्पन्न करते हे।  परन्तु ये उल्कापिंड आते कहाँ  से हे ? 
ये भटके हुए पत्थर दो प्रकार के होते हे।
धूमकेतु (Comet)
क्षुद्र ग्रह (Asteroids)

धूमकेतु (Comet)

 सोर मंडल के छोर पर बहुत ही छोटे -छोटे अरबो पिंड उपस्थित हे , जिन्हे हम धूमकेतु या पुच्छल  कहते हे।   comet  शब्द ग्रीक भाषा के शब्द kometes  से बना हे जिसका मतलब बालों वाला (hairy  one) होता हैजिससे इनका नाम धूमकेतु या पुच्छल  तारा पड़ा। यह धूल ,चट्टान और जमी हुई गैसों और पानी से बने होते हे। सूर्य के समीप आने पर गर्मी के कारण इंमेजामीहुई बर्फ और गैसेस पिघलकर एक पूंछ Tail  का रूप ले लेती हे।



 जब सूर्य की रोशनी इस पूंछ पर पड़ती हे तो यह काफी चमकदार नजर आती हे। प्रत्येक धूमकेतु एक निश्चित समय पर पृथ्वी नजर से आता हे। हैली धूमकेतु का परिक्रमण काल 76 वर्ष है, यह अन्तिम बार 1986 में दिखाई दिया था। अगली बार यह 1986 + 76 = 2062 में दिखाई देगा। हालांकि कॉमेट के केवल बहुत छोटे आकर को ही हम उल्का पिंड की श्रेणी में रखते हैं।         

क्षुद्र ग्रह (Asteroids)

क्षुद्र ग्रह (Asteroids)  वे चट्टानें होती हैं जो किसी ग्रह की तरह ही सूरज के चक्कर काटती हैं लेकिन ये आकार में ग्रहों से काफी छोटी होती हैं। हमारे सोलर सिस्टम में ज्यादातर ऐस्टरॉइड्स मंगल ग्रह और बृहस्पति यानी मार्स और जूपिटर की कक्षा में ऐस्टरॉइड बेल्ट में पाए जाते हैं। इसके अलावा भी ये दूसरे ग्रहों की कक्षा में घूमते रहते हैं और ग्रह के साथ ही सूरज का चक्कर काटते हैं।




 करीब 4.5 अरब साल पहले जब हमारा सोलर सिस्टम बना था, तब गैस और धूल के ऐसे बादल जो किसी ग्रह का आकार नहीं ले पाए और पीछे छूट गए, वही इन चट्टानों यानी ऐस्टरॉइड्स में तब्दील हो गए। यही वजह है कि इनका आकार भी ग्रहों की तरह गोल नहीं होता। कोई भी दो ऐस्टरॉइड एक जैसे नहीं होते हैं। आपने कई बार सुना होगा कि एवरेस्ट जितना बड़ा ऐस्टरॉइड धरती के पास से गुजरने वाला है तो कभी फुटबॉल के साइज का ऐस्टरॉइड आने वाला है। ब्रह्मांड में कई ऐसे ऐस्टरॉइड्स हैं जिनका डायमीटर सैकड़ों मील का होता है और ज्यादातर किसी छोटे से पत्थर के बराबर होते हैं। 

                                   अब आपके मन मे पुनः एक प्रश्न होता होगा की  शूद्र गृह , धूमकेतु और उल्कापिंड किसे कहते हे? तो इसका जवाब आसान हे , की शूद्र गृह और धूमकेतु  जिनका आकर बहुत छोटा होता हेयर जो धरती के वायुमंडल में टकराने के बाद वायुमंडल में ही नष्ट हो जाते हे उन्हें उल्का पिंड और इस घटनाको उल्कापात कहा जाता हे। 
तो फिर तैयार रहीये आसमान से इस खूबसूरत नज़ारे को देखने के लिए।

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