हम इंसानों की इंसानियत इंसानों तक ही क्यों सीमित ? काश थोड़ी जानवारियत भी हम में होती।


हम कौन है, इंसान है! ना ना आज गर्व  नहीं बेशर्मी कि भी बात कर ले आज तो अच्छा होगा। और हक भी बनता है और जिम्मेदारी भी आखिर हम इंसान ही तो धरती के करता धरता है। ओर जब धरती पर हमारा ही कब्जा है तो क्यों हक ना जताए यहां की हर चीज पर प्रकृति,जीव - जंतु,खनिज, धातु,जल,थल,जंगल फिर तो शर्म, बेशर्मी, हैवानियत, भी तो  इसी धरती का हिस्सा है और हम इंसानों का इसपर भी पूर्ण अधिकार है।
 यूं तो अनगिनत किस्से है हमारी हेवानियात और बेशर्मी के जिन पर हम इंसान सिना चौड़ा करके गर्व कर सकते है।

हो सकता है मेरे शब्दों का चुनाव ठीक ना हो और जिनको मेरी बातों का बुरा लगा हो उनसे मैं क्षमा मांगता हूं। परंतु जिस प्रकार एक शेर आदमखोर होता है तो हम सभी शेरों आदमखोर समझ लेते हैं जिस तरह एक कुत्ता हमें काटता है तो हम सभी कुत्तों से नफरत करते हैं जिस तरह एक घोड़ा लात मारता है तो हम सभी को ऐसा ही समझ लेते हैं तो फिर यह नियम इंसानों को लागू क्यों नहीं होता?

हाल ही में घटित 2 घटनाएं जिससे हम सभी इंसान परिचित भी होंगे,ओर अगर इन घटनाओं से आप अब भी अनजान है तो आज अपने आप का स्वामुल्यांकान का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा।

पहली घटना- 


केरल एक ऐसा राज्य जो सबसे ज्यादा  शिक्षित होने का दंभ भरता उसी केरल कि दिल दहला देने वाली घटना
 एक गर्भवती हथिनी मल्लपुरम की सड़कों पर भटकती है। मनुष्य ओर हाथी का संबंध हजारों वर्षों से मैत्रीपूर्ण रहा है। माफ कीजिए मैत्रीपूर्ण नहीं शायद मालिक गुलाम का।
तो हल है में ताजा घटित घटना इस प्रकार है ,की एक गर्भवती हतनी जो भूखी और लाचार भटक रही थी। अक्सर कुछ लोग कुछ खाने को देते  तो खा लेती। परन्तु इस बार इंसान पर भरोसा करना महंगा पड़ा और कुछ इंसान जो खुद को धरती का कर्ता धर्ता समझने लगे उन्होंने अन्नानास में पटाखे भर कर हथनी को खिला दिए ।पटाख़े उसके मुँह में फटते हैं। उसका मुँह और जीभ बुरी तरह चोटिल हो जाते हैं।



मुँह में हुए ज़ख्मों की वजह से वह कुछ खा नहीं पा रही थी। गर्भ के दौरान भूख अधिक लगती है। उसे अपने बच्चे का भी ख़याल रखना था। लेकिन मुँह में ज़ख्म की वजह से वह कुछ खा नहीं पाती है। घायल हथिनी भूख और दर्द से तड़पती हुई सड़कों पर भटकती रही। इसके बाद भी वह किसी भी मनुष्य को नुक़सान नहीं पहुँचाती है, कोई घर नहीं तोड़ती। पानी खोजते हुए वह नदी तक जा पहुँचती है। मुँह में जो आग महसूस हो रही होगी उसे बुझाने का यही उपाय सूझा होगा। फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को जब इस घटना के बारे में पता चलता है तो वे उसे पानी से बाहर लाने की कोशिश करते हैं लेकिन हथिनी को शायद समझ आ गया था कि उसका अंत निकट है। और कुछ घंटों बाद नदी में खड़े-खड़े ही वह दम तोड़ देती है।

भारत में हाथियों की कुल संख्या 20000 से 25000 के बीच है। भारतीय हाथी को विलुप्तप्राय जाति के तौर पर वर्गीकृत किया गया है।



हाथी एक ऐसा जानवर जो किसी ज़माने में राजाओं की शान होता था आज अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है। धरती का एक बुद्धिमान, समझदार याद्दाश्त में सबसे तेज़, शाकाहारी जीव क्या बिगाड़ रहा है हमारा जो हम उसके साथ ऐसा सलूक कर रहे हैं?

दूसरी घटना -


कुछ दिन पहले की ही एक ओर दिल दहला देने वाली मनवघटना जिसमें मानवता केवल मानव के लिए होती है। उज्जैन में घटित होती है।
एक स्ट्रीट डॉग हां वही जिसे हम आवारा कुत्ता कहकर संबोधित करते हैं। इसी स्ट्रीट डॉग से संबंधित है कुछ सूअर पालकों ने एक कुत्ते के चारों पैर बांधकर जिंदा उसे तालाब में पटक दिया और उसकी मौत का तमाशा देखते रहे उन्होंने  इतना ही नहीं एक बहुत बड़ा पत्थर भी उसके गले से बांध दिया ताकि कुत्ता तैरकर पानी से बाहर ना आ सके।



उस कुत्ते का कसूर क्या था केवल इतना कि वह उस एरिया में घूमने वाले सुकरो के ऊपर भोकता था, और उन्हें वहां से भगा देता था।

हम थोड़ी जानवरों की जानवरीयत को भी समझ लेते हैं।


 उदाहरण मोगली और टार्जन को ही देख लेते हैं, एक को भेड़ियों के झुंड ने पाला और दूसरे को गोरिल्ला ने। इनके अलावा भी जंगल से बहुत सी ऐसी खबरें निकलकर आती है जो वास्तव में मित्रता और ममता की प्रेरणा देती। कभी गाय का दूध पीकर शेर को पलते हुए देखा तो कभी तेंदुए और बकरी की दोस्ती।


खैर जो भी हो राज तो हमारा ही है, धरती पर जो मर्जी होगा वही करेंगे हम।


वह ख़बर ज़्यादा पुरानी नहीं हुई है जब अमेज़न के जंगल जले। इन जंगलों में जाने कितने जीव मरे होंगे। ऑस्ट्रेलिया में हज़ारों ऊँट मार दिए गए, यह कहकर कि वे ज़्यादा पानी पीते हैं। कितने ही जानवर मनुष्य के स्वार्थ की भेंट चढ़ते हैं।



कहीं नीलगाय को उत्तर प्रदेश में यह कह कर मारने की परमिशन दे दी जाती है, कि यह किसानों की फसलों को चौपट कर देती है। कभी शेर का शिकार आदमखोर जानवर के नाम पर कर दिया जाता है तो कभी तेंदुए को ग्रामीणों की भीड़ पीट-पीटकर मार डालती है, साहब यह आपके घर में नहीं असल में आप ने इनके घर में घुसपैठ की है। कभी-कभी तो मुझे ऐसा लगता है कि यह जानवर हमारे शहरों में इसलिए नहीं खुश थे कि हमें नुकसान पहुंचाया बल्कि शायद अपनी व्यथा सुनाने हमारे पास आते हैं कि रुक जाओ हमारे आशियाना को मत जोड़ो हम कहां रहेंगे मगर वह मुक्त प्राणियों हमारी भाषा नहीं जानते और हम उनकी भावनाएं नहीं समझते आदमखोर समझकर उन्हें मारकर दूसरे इंसानों को बचाकर हम इंसानियत का फर्ज निभा देते हैं।

प्रकृति के संरक्षक


 पढ़े-लिखे लोगों से बेहतर तो वे आदिवासी हैं जो जंगलों को बचाने के लिए अपनी जान लगा देते हैं। जंगलों से प्रेम करना जानते हैं। जानवरों से प्रेम करना जानते हैं।सही मायने में आदिवासी समाज और जो इंसान और जानवर प्रकृति सभी के साथ समन्वय बैठाकर समान व्यवहार करें वही जीवित कहलाने के लायक है।बाकी तो केवल हम इस वह में है कि हम सब कुछ है सच तो यह है कि हम मुर्दों की भीड़ है।




काश हम में थोड़ी जानावरियत भी होती ताकि जानवरों की भावनाओं को भी हम समझ पाते।


2 टिप्पणियाँ

  1. Ab to esa lagta he ki manushya ne itani tarakki kyu karli, kya janvar banne ke liye?

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  2. अजय भाई जानवर और इंसान में बस इतना ही अंतर है कि जो जानवर मांसाहारी है वह प्राकृतिक रूप से दूसरे जानवर का भोजन करता है। परंतु इंसान बेवजह एक दूसरे का शोषण करता है। इस मामले में जानवर हम से कई गुना बेहतर स्थिति में है।

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