नेपोटिस्म की जड़ो में जकड़ा हमारा समाज


"नेपोटिस्म  हमारे समाज का आइना हे, बॉलीवुड पर लगे आरोप तो उस आईने पर लगे कीचड़ के कुछ धब्बे  हे, जिस  दलदल में हमारा  समाज डूबता ही जा रहा हे।  हम केवल आरोप लगाना जानते हे लेकिन जब अपने फायदे की बात आती हे तो हम सभी नेपोटिस्म का लाभ लेने की जुगत में रहते हे"।  



14  जून 2020  करीब 3  बजे मोबाइल पर वाट्सएप्प मेरे करीबी मित्र का मेसेज  आता हे, "सुशांत सिंह  राजपूत ने आत्महत्या की ". मेरे कहा भाई क्या बकवास हे, ये खबर गलत हे सही ये हे की सुशांत सिंह  राजपूत की पूर्व मैनेजर ने बिल्डिंग  से कूदकर आत्महत्या की और  न्यूज़ भी 5 -6 दिन पुरानी है. उसने कहा सच में, मुझे यकीन नहीं हुआ तुरंत टीवी चालू किया तो ही न्यूज़ चैनल पर एक ही  खबर "सुशांत सिंह  राजपूत ने की आत्महत्या"। भरोसा नहीं हो पा रहा था एक होनहार अभिनेता हमारे बिच नहीं रहा।





       "काई पो छे " पहली फिल्म जिसमे अपने अभिनय का लोहा मनवाया। उसके बाद लगातार PK , डिटेक्टिव वयंबकेश बक्शी , MS  धोनी , केदारनाथ , छिछोरे जैसी फिल्मे यक़ीनन एक उम्दा कलाकार से सभी गुण थे उसमे ।  फिल्म छिछोरे बड़े पर्दे पर सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म थी। उनकी यह फिल्म जिंदगी से उम्मीद हार चुके लोगों को प्रेरित कर देने वाली थी। उसी फिल्म का एक डायलॉग  " हम हर जीत, सक्सेस, फेलियर में इतना उलझ गए हैं कि जिंदगी जीना भूल गए हैं। जिंदगी में अगर कुछ सबसे ज्यादा जरूरी है तो वो है खुद की जिंदगी"। क्या सच में वो आत्महत्या कर सकता था , नहीं मुझे तो नहीं लगता कहने को हम कह सकते हे,की  वो तनाव में था, मेन्टल डिसऑर्डर से ग्रसित परन्तु ये तनाव देने वाले लोग कौन हो सकते हे। सुशांत सींग राजपूत की मृत्यु के बाद लगातार बॉलीवुड निशाने पर हे यहाँ भाई भतीजेवाद  यानि  "नेपोटिस्म" के आरोप पहले भी लगते रहे हे। 

क्या हे, नेपोटिस्म ?


भाई-भतीजावाद अथवा नेपोटिज़्म (Nepotism) दोस्तवाद के बाद आने वाली एक राजनीतिक शब्दावली है जिसमें योग्यता को नजर अन्दाज करके अयोग्य परिजनों को उच्च पदों पर आसीन कर दिया जाता है। नेप्टोइज्म शब्द की उत्पत्ति कैथोलिक पोप और बिशप द्वारा अपने परिजनों को उच्च पदों पर आसीन कर देने से हुई। बाद में इस धारणा को राजनीति, मनोरंजन,व्यवसाय और धर्म सम्बन्धी क्षेत्रों में भी बल मिलने लगा। बॉलीवुड में पहली बार नहीं हो रहा ये सब खेर मै  बॉलीवुड के बारे में ज्यादा बात नहीं करूँगा क्यूंकि मुझे लगता हे शायद आप सब लोग मुझसे ज्यादा इस बारे में जानते होंगे। तो बात करते हे हमारे समाज की, कि कैसे नेपोटिस्म हमारे आपके बिच जमकर फैला हे जिस और हमारा ध्यान कम ही जाता हे और अगर ध्यान जाता भी हे तो भृष्टाचार के रूप में। 




हमारे समाज में कहा- कहा है नेपोटिस्म 

आज के ज़माने में अगर आपके पास जेक - जुगाड़ हो तो काम आसान हो  जाता हे.अब जैक जुगाड़ से तो हम भारतीय बहुत अच्छे से परिचित हे जैक यानि  " पैसा " जुगाड़  मतलब " पहचान"। राजनीति में तो ये परम्परा बन चुकी हे की भया ये सांसद,विधायक  महोदय हमारे यंहा से जीतते आये हे इसबार उनका भाई, बेटा, भतीजा चुनाव में हे।  सम्भावना काफी हद तक हो जाती हे ऐसे व्यक्ति के चुनाव जितने हां अगर जनता किसी विशिष्ट पार्टी से नाराज न हो तो।  हमारे यहाँ किसी खास पार्टी के नेता के बेटे की सम्पाती कुछ ही महीनो में हजार गुना बढ़ जाती हे. सायद इसे ही भारत की आर्थिक तरक्की समझ लिया जाता हे। प्रइवेट कम्पनी में नौकरी के लिए जाओ तो वंहा पहले ही सिफारिश की लाइन लगी होती हे. मेडिकल कालेज की सीटे ऐसे बिकती हे जैसे मंडी में सब्जी की बोली लग रही हे, बस अंतर  इतना ही हे की ये सब परदे के पीछे  होता हे। हाल ही में उत्तर प्रदेश में एक अध्यापिका एक ही नाम  से कई जगह  नौकरी कर करोडो रूपये तनख्वाह लेती हे।  सरकारी नौकरी के फॉर्म आने से पहले वेकन्सी बिक जाती हे।  प्रधान मंत्री  रोजगार  के बजाय स्वरोजगार अपनाओ  कड़वी सच्चाई हे की बैंक बिना जान पहचान आपको लोन नहीं देगी , अगर जान पहचान नहीं हे तो कोई बात नहीं कुल लोन का एक हिस्सा मैनेजर के मुँह में ठूस दे तो काम हो  जाता हे। कही कोई काम हो हमारी आदत बन गयी हे सबसे पहले उस विभाग में जान पहचान निकलने की। बच्चा कितनी ही पढ़ाई करे मेडिकल की सीटे एग्जाम से पहले ही बिक जाती हे।  गरीब भूमिहीन किसान आत्महत्या करता हे क्यूंकि मुआवजा बांटता तो हे परन्तु नेताओ ,अधिकारियो के रिश्तेदारों में वोस जरुरत मंद को नहीं जो केवल दो वक्त की रोटी का जुगाड़  ही अपनी जिंदगी गुजर देता हे।  राशन कार्ड बनवाने कोई गरीब जजता हे तो कहते हे अब नहीं बनते परन्तु 5000  हजार में आपका काम हो जायेगा गरीब 5000 रूपये नहीं दे सकता इसलिए तो वो गरीब हे, खेर उसका राशन  कार्ड तो बनेगा नहीं क्यूंकि गरीब की ना कोई पहचान न देने के लिए पैसे।  आज भी कई बड़े बड़े बंगले में रहने वाले लोंगो को 100 रूपये वाला बिजली का बिल आता हे और गरीब के जंहा हजारो में। सब जान पहचान का कमल हे साहब आप इसे जैक - जुगाड़ कहे या नेपोटिस्म मतलब एक ही हे योग्यता को दरकिनार करके अयोग्य को लाभ पहुँचाना। 


जिम्मेदार कौन  हे इन सब का ?



हममे से कितने लोग हे जो किसी शासकीय कार्य करवाने के लिए सबसे पहले पता करते हे की फलानि जगह कोई पहचान का तो नहीं  हे। राशन कार्ड बनवाना हो तो पहचान से काम हो  जाता हे पहचान से क्या होता हे ? ये तो आप भी  जानते हे काम आसान जल्दी हो जाता हे चाहे थोड़े पैसे ही क्यों ना देना पड़े। में मेरे खुद का अनुभव  साझा करना चाहता हु,6 साल पहले जब मैं  इंजीनियरिंग करने के बाद कई जगह प्राइवेट कंपनी  में नौकरी के लिए जाते थे गार्ड सिफारिश का पूछता था नहीं होती तो कुत्तो की तरह भगाया जाता था। अगर सिफारिस हे तो आप HR को अपना बायो डाटा दे सकते हो, आपका काम हो जायेगा। सरकारी नौकरी में वेटिंग में नाम तो आता हे पर सीटे खाली होने के बावजूद वेटिंग कभी क्लियर नहि होती। टेलेंट तो था पर भाई भतीजावाद "नेपोटिस्म " ने हमारा शिकार किया। एक दिन कॉल आता हे  कंसल्टेन्सी का कहते हे जॉब हे, आ जाओ  वंहा जाने पर पता चलता हे की एक निश्चित राशि "रिश्वत " एडवांस में जमा करना पड़ती हे।  मेने नहीं करवाए क्यूंकि ईमानदारी का  भुत  सवार था।  मेरा मित्र जो मेरे साथ था उसमे जुगाड़ किया " रिश्वत " आज अच्छी जगह और  तनख्वाह पर काम कर रहा हे, आज मेरा कॉल भी नहीं उठता। 





 कुछ लोग  रिश्वत देकर सर्टिफिकेट डिप्लोमा बनवा  लेते हे , कुछ ऐसे भी हे जो शायद  रिश्वत के दम पर सर/मेडम बनकर बैठे हे।  इन लोगो की औकात कुछ होती नहीं लेकिन पैसो के घमंड के सामने तो इतिहास के बड़े बड़े लुटेरे भी सरमा जाये। कुल मिलकर पूरा सिस्टम नेपोटिस्म का शिकार हे भृष्टाचार  का दूसरा नाम नेपोटिस्म  ही हे जंहा योग्य व्यक्ति को किनारे करके अपने सगे  सम्बन्धी को वंहा पंहुचा देते हे जंहा के लिए वह योग्य नहीं हे। कई लोग ऐसे भी हे जो अपनी म्हणत और ईमानदारी के दम  पर उच्च पद  और सम्मान प्राप्त करते हे।  शासकीय कार्यो में 100 % घोटाला नहीं होता क्योकि उनको भी  थोड़ी ईमानदारी की सफेदी  जनता को दिखाना पड़ती हे। जितनी भी समस्या के बारे मे हमने ऊपर बात की वो हमारे समाज का आइना हे, बॉलीवुड पर लगे आरोप तो उस आईने पर लगे कीचड़ के कुछ धब्बे  हे, जिस  दलदल में हमारा  समाज डूबता ही जा रहा हे।  हम केवल आरोप लगाना जानते हे लेकिन जब अपने फायदे की बात आती हे तो हम सभी नेपोटिस्म का लाभ लेने की जुगत में रहते हे।  





  खेर मैं  अपनी लाइफ से खुश हु पानी, हवा का रास्ता कोई ज्यादा देर नहीं रोक सकता वो अपना रास्ता   खुद बनाना जानते हे , आत्महत्या किसी भी समस्या का हल नहीं हे जीवन में चुनौती आती तो हे  पर आपको मजबूत बनाने की लिए, एक सुनहर अवसर होता हे की उस चुनौती का डट कर सामना करके अपना नाम बनाने का। कभी अगर मन में नकारात्मक ख्याल आये तो किसी अपनों से बात करलो खुल कर अगर नहीं कर सकते हो आप वो करो जो सबसे ज्यादा पसंद हो खेर में जब भी उदास होता हु तो कोई नई डिश बनता हु कुकिंग मेरी हॉबी हे।  प्रकृति से बाते करता हूँ बेशक कभी कभी मुझे पागल समझ लिया जाता हे पर जब सुनने वाला कोई नहीं हो तो नेचर प्रकृति को अपनी बाटे बताओ क्यूंकि नेचर में ऐसे ऐसे उदाहरण मौजूद हे जहा कठिन से कठिन परिस्थिति में भी जीवन मुस्कुराता हे। 


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