क्या भारत के साथ चीन शक्ति प्रदर्शन करके विश्व को डराना चाहता है?


भारत और चीन के बीच तनाव बहुत  चरम स्तर पर ही दोनों सेनाएं आमने-सामने हैं और हमारे सामने झड़प के वीडियो भी आए हैं। लद्दाख सिक्किम में चीन की सेनाएं भारतीय सीमा क्षेत्र में भारतीय सेनाएं उनके समक्ष दीवार बनकर खड़ी है यह कोई महज इत्तेफाक नहीं है चले इसे समझने के लिए। मान लीजिए आप कह देने में कोई सपना देख रहे हैं, कई घटनाक्रमों के बाद आप राजा बनने वाले हैं। अचानक कोई आता है और आपको नींद से जगा देता है बहुत बुरा लगता है। जो हमें सपने से जगा देता है उस पर हम कभी-कभी गुस्सा भी हो जाते क्या हम कुछ देर और सोने का नाटक करते हैं नींद लेना है लेकिन नाटक जरूर करते हैं।
यही नाटक आजकल दुनिया में चल रहा है। पिछले कुछ वर्ष से अमेरिका और चीन के बीच महा शक्ति बनने की होड़ लगी हुई है। पिछले कई सालों से चीन और अमेरिका के बीच ट्रेड वार" व्यापारिक युद्ध" को भी हम देखते आ रहे हैं।




इन सब में चीन का पलड़ा भारी नजर आ रहा था उनको भी क्यों ना चीन दुनिया घर में उत्पादन के लिए मशहूर है चीन एक वैश्विक फैक्ट्री बन चुका है जहां हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी चीज बनाई जाती है देख लीजिए एप्पल कहने को तो अमेरिका का है लेकिन सारे पार्ट चाइना में ही बनते हैं। 


चीन के महाशक्ति बनने का सपना ओर कोरोनावायरस


अमेरिका ट्रेड वार मेंचीन का पलड़ा भले ही भारी रहा है।परंतु एक कोरोनावायरस ने चीन के साख़ पर  बट्टा     लगााया      था जैसा ऊपर आपने पढ़ा चीन वैश्विक महाशक्ति बनने की ओर बढ़ ही रहा था कि अचानक उसका का टूट गया और वह सपना थोड़ा कोरोनावायरस में पूरी दुनिया में चीन की साख को बहुत बड़ा धक्का लगा है। कई रिपोर्ट के आधार पर कहा जा रहा है कि चीन ने वक्त रहते कोराना वायरस की जानकारी दुनिया को नहीं दी जिसकी वजह से पूरी दुनिया लॉक डाउन का सामना कर रही है। पूरी दुनिया में चीन की निंदा की जा रही है और उसे इस वायरस के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है तथा चीन पर अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने का भी दबाव है क्योंकि दुनिया भर की फैक्ट्रियां और निवेशक चीन का विकल्प तलाशने में लगे हुए हैं वह सबसे बड़े विकल्प के रूप में वह भारत को देख रहे हैं।


भारत को चीन के बीच तनाव का कारण।


चीन के नजरिए को समझने के लिए 1962 के युद्ध की पृष्ठभूमि को समझना होगा।
जैसे कि हमने ऊपर देख ही लिया है कि चीन किस तरह एक नींद में था और अचानक उसकी नींद खुली और सपना टूटा। इस तनाव को जानने के लिए सर्वप्रथम हमें इतिहास के पन्नों को पलटना पड़ेगा वह चीन के चाहे जो कहें आधुनिक चीन के इतिहास को समझना चाहिए।
डायनेस्टिक  1912 में शिन्हाई क्रांति के साथ समाप्त हो गया, जब चीन गणराज्य च्यांग ने किंग राजवंश की जगह ली।
चीन में राजनीतिक विभाजन ने कम्युनिस्ट पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) से युद्ध करने के लिए च्यांग के लिए मुश्किल बना दिया, जिसके खिलाफ कुओमितांग 1927 से चीनी गृह युद्ध में युद्ध कर रहा था। यह युद्ध कुओमितांग के लिए सफलतापूर्वक जारी रहा और  उसने चीन में लोकतांत्रिक सरकार का गठन किया परन्तु
बाद के चीनी गृह युद्ध का परिणाम 1949 में तब हुआ जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने माओत्से तुंग की अगुवाई में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मुख्य भूमि चीन में स्थापित किया, जबकि कुओमितांग की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी सरकार ताइवान के द्वीप पर वापस चली गई जहां वह 1996 तक शासित रही। जब ताइवान ने लोकतंत्र में परिवर्तन किया। ताइवान की राजनीतिक स्थिति आज भी विवादित है।



ठीक इसी प्रकार सन् 1933 ई0 में 13वें दलाई लामा की मृत्यु के बाद से बाह्य तिब्बत भी धीरे-धीरे चीनी घेरे में आने लगा। चीनी भूमि पर लालित पालित 14 वें दलाई लामा ने 1940 ई0 में शासन भार सँभाला। 1950 ई0 में जब ये सार्वभौम सत्ता में आए तो पंछेण लामा के चुनाव में दोनों देशों में शक्तिप्रदर्शन की नौबत तक आ गई एवं चीन को आक्रमण करने का बहाना मिल गया। 1951 की संधि के अनुसार यह साम्यवादी चीन के प्रशासन में एक स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया गया। इसी समय से भूमिसुधार कानून एवं दलाई लामा के अधिकारों में हस्तक्षेप एवं कटौती होने के कारण असंतोष की आग सुलगने लगी जो क्रमश: 1956 एवं 1959 ई0 में जोरों से भड़क उठी। परतुं बलप्रयोग द्वारा चीन ने इसे दबा दिया। अत्याचारों, हत्याओं आदि से किसी प्रकार बचकर दलाई लामा नेपाल पहुँच सके। अभी वे भारत में बैठकर चीन से तिब्बत को अलग करने की कोशिश कर रहे हैं। अब सर्वतोभावेन चीन के अनुगत पंछेण लामा यहाँ के नाममात्र के प्रशासक हैं।
इन दोनों घटनाओं से चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ने लगा था और उस समय की महाशक्ति अमेरिका और ब्रिटेन चीन को घुटने पर आना चाहती थी ऐसे चीन दुनिया को डराना चाहता था और उसे सबसे सही मौका मिला भारत के रूप में क्योंकि भारत में दलाई लामा को शरण दी थी और 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया यह हमला केवल और केवल शक्ति प्रदर्शन के रूप में ही था बाढ़ में जितने बड़प्पन दिखाते हुए भारत से युद्धविराम की घोषणा कर हजरत इस अचानक हुए युद्ध के लिए तैयार नहीं था क्योंकि भारत हिंदी चीनी भाई-भाई के नारे में ही मशगूल था।


इस बार चीन के बोखलाहट  की वजह क्या है?


ऊपर वाली बात से हम इस बात का अंदाजा आसानी से लगा सकते हैं कि आज फिर ठीक वैसे ही हालात है। हम कुछ पॉइंट से समझ सकते हैं-


  •  पूरी दुनिया कोरोनावायरस के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रही है।
  • पिछले कुछ समय से हांगकांग की स्वायत्तता को लेकर हांगकांग में हो रहे विरोध प्रदर्शन से भी चीन परेशानी में है। 
  • जैसा कि हमने देख ही चुके हैं कि ताइवान को चीन अपना हिस्सा मानता है, हाल ही में ताइवान में नवनिर्वाचित सरकार का गठन हुआ जो चीन कि वन नेशन पॉलिसी के खिलाफ मानता है।द
  • दक्षिणचीन सागर में चीन की दादागिरी जिसके खिलाफ भारत अमेरिका ऑस्ट्रेलिया जापान दक्षिण कोरिया का एकजुट होना।
  • चीन अपने उत्पादन के दम पर दुनिया की महाशक्ति उच्च सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के सपने देख रहा था वही वायरस फैलने के बाद कई देशों के निवेशक चीन से निवेश को भारत ताइवान इंडोनेशिया जैसे देशों को विकल्प के रूप में देख रहे हैं जो चीन की अर्थव्यवस्था को बहुत बड़े झटके के समान होगा।


फिर कहानी 1962 वाली दोहराई जा रही


चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव में ऐसे में वह अपने सीमावर्ती देशों में दबाव की नीति अपना रहा है ताइवान भारत दक्षिण चीन सागर भारत के साथ चीन का सीमा विवाद काफी पुराना है मगर इस प्रकार सेना का आमने सामने आना केवल शक्ति प्रदर्शन का ही एक कारण माना जा सकता है कुछ संभव है कि चीन केवल शक्ति प्रदर्शन कर रहा है।



 दुनिया को अपनी ताकत से डराने की कोशिश कर रहा है क्योंकि अभी कोरोनावायरस को लेकर चीन पूरी तरह बैकफुट पर ही कहीं अंतरराष्ट्रीय मंचों से चीन की निंदा की जा रही है वह चीन पर कड़े प्रतिबंध लगाने की भी बातें हो रही है बस यही दबाव की नीति है। हालांकि अभी युद्ध न भारत के हित में होगा न चीन के हित में यह बात चीन अच्छे से जानता है कि 1962 में भारत धोखे से हारा था। भारत जिसे अपना दोस्त मानता था हिंदी चीनी भाई भाई का राग अलाप था उसी ने उसके साथ विश्वासघात किया परंतु 1967 की लड़ाई में चीन को एक सबक मिल गया था और आज भी चीन के लिए इतना आसान नहीं होगा जितना 1962 में था।  फिर भी मामले को जल्द ही कूटनीतिक तरीके से हल कर लेना चाहिए, क्योंकि तनाव बहुत ज्यादा बड़ता है, तो यह एक शुद्ध का रूप ले सकता है। व जिस प्रकार विश्व आज अमेरिका और चीन के दो ध्रुवों में बांटता का रहा है, कहीं यह विश्वयुद्ध की शुरुआत ना कर दे।






1 टिप्पणियाँ

  1. Isme china ko samajhna hoga ki india hi use vo mukaam hashil karva sakta he,lekin vo apne aap me bahut takatvar maan rha he ,vo yehi galti kar raha he ,india ko kamjor samajhakar .or janta ko bhi samajhna hoga ki kya sahi he kya galat.

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