वाह क्या अजीब है इंसान भी....!


वाह क्या अजीब है इंसान भी....!



अपनो से दूरी बनाए रखता है, नहीं पता पड़ोस में कोन।
एक आभासी दुनिया बनाकर जीता रहता उसी में मोन।।

जिसने आज तक नहीं देखा सुबह सवेरा,टि्वटर फेसबुक व्हाट्सएप है जिसकी दुनिया।
आज जब घरों में रहना है ,तो बाहर निकल निकल कर देख रहा हैं कैसी यह दुनिया।।

वाह क्या अजीब है इंसान भी........

भागदौड़ भरी जिंदगी में आज जब मौका मिला आराम का,
बहुत लोगों को काम याद आ रहा कहते हैं, नहीं खाना हराम का।

जानवरों को पकड़कर जब अलग-थलग कर रखा, कभी चिड़ियाघर तो कभी पिंजरा कहा जाने लगा।
आज जब जब खुद की बारी आई तो क्वॉरेंटाइन ओर आइसोलेशन कहा जाने लगा।।



वाह क्या अजीब है इंसान भी.......!

मौत खड़ी है सर पर फिर भी श्रेष्ठता का अहंकार नहीं छोड़ेगा, कोई हिंदू तो कोई मुसलमान एक दूसरे को बर्बाद करने का कोई मौका आज भी  नहीं छोड़ेगा।

सोशल मीडिया पर झूटी, फर्जी खबरों पर सजा का है प्रावधान। टीवी चैनल वाले दिखाएं झूठ का पुलिंदा और कोई रोके तो यह पत्रकारिता, अभिव्यक्ति और संविधान का अपमान।।

वाह क्या अजीब है इंसान भी....

खुले आसमान में उड़ता पंछी भी सोचता होगा कहां गया वह इंसान। दिन-रात धरती को उजाड़ देने वाला  कहां छुप गया इंसान।

लाख जतन किए न  हुई साफ हवा न गंगा जमुना का जल।
कुछ दिन घर में क्या रहे हम, हो गई धरती की कई समस्या हल।।

वाह क्या अजीब है इंसान भी.....!

कई चुनौतियों का सामना करके आज सभ्य जीवन में पहुंचा पर जो सुधर जाए वह क्या कहलाए इंसान।

अब भी मौका है, एक होकर लड़े इस बीमारी से वरना कल को जानवर भी कहेगा एक था इंसान।।

जहां अपना स्वार्थ लगे तो चीजें अच्छी लगती है , नुकसान हो तो वह बुरी हो जाती है। इसीलिए तो अजीब है इंसान.....!

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