दुनियाभर में कोरोना वायरस की वजह से हो रहे लोक डाउन से प्रकृति को कितना फायदा।

‌लोक डाउन का आज सातवां दिन है, पूरी दुनिया में कोरोनावायरस के मामले लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। जहां अमेरिका इस वक्त कोरोना का मुख्य केंद्र बन गया है, जहां डेढ़ लाख के करीब कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं।




भारत में भी करीब 1050 से ज्यादा मामले आ चुके हैं। हम घरों में कैद है पूरी दुनिया घरों में कैद है, आज हमारे अस्तित्व का सवाल है। इंसान जो खुद को स्वतंत्र मानता था, आज अपने ही घरों के जंजीरों में बंद सा हो गया है। पिछले 300 सालों से हमने प्रकृति पर विजय प्राप्त करने का एक अभियान चला रखा था। पिछले 300 सालों में हमने प्रकृति का हर तरह से दोहन किया। औद्योगिक क्रांति के बाद तो मनुष्य के पर निकल आए उसे लगने लगा कि, वह प्रकृति को अपने वश में कर लेगा। जंगल बेतहाशा नष्ट किए कुछ समय पहले ही डोनाल्ड ट्रंप में जेनेवा कन्वेंशन से हटने का फैसला किया। जहां जलवायु परिवर्तन उसका कहना था, कि कार्बन उत्सर्जन के मामले भारत और चीन जैसे देश सबसे आगे है। अमेरिका को इन देशों को आर्थिक मदद के रूप में अरबों डॉलर देने पड़ते हैं। अतः बिगड़ते अमेरिकी अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वह कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं करेंगे और इस समझौते से खुद को अलग करते हैं।




‌ भारत में भी पर्यावरण संरक्षण को लेकर बहुत सारे नियम बने परंतु पर्यावरण संरक्षण को लेकर कोई भी ना तो राष्ट्रीय स्तर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर है। संस्थाएं केवल औपचारिक रह गई है। चाहे ओजोन परत का क्षरण हो, बढ़ते समुद्र का जलस्तर, ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण बढ़ता तापमान, मनुष्य की सनक की वजह से उपरोक्त चुनौतियों को गंभीरता से कभी लिया ही नहीं गया। भविष्य की आने वाली समस्याओं के बारे में सब जानते हैं। मगर  सभी बैठक केवल औपचारिक ही रह जाती है। कुछ दिनों से लोक डाउन में एक सुखद अनुभव यह रहा कि कल मैं जब छत पर घूम रहा था, तो मुझे गोरैया दिखाई दे हां वही पित्ती सी चिड़िया जिसके बारे में स्कूल में पढ़ा था। कहीं लुप्त सी होने लगी, उसकी चह चहाट सुनकर देखकर यकीन ही नहीं हुआ, कि वह अब भी हमारे पास हो सकती है। एक-दो नहीं कई गौरेया को आसमान में उड़ते देखा। ऐसे पक्षी भी देखने को मिले कभी देखा ही नहीं था कहां चले गए। अमूमन शहरों में ऐसे दृश्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती, परंतु यह असंभव कार्य संभव हो गया प्रकृति ने कर दिखाया।




‌ हमने प्रकृति का 300 साल मैं प्रकृति का इतना दोहन किया। जलवायु परिवर्तन और प्रकृति संरक्षण को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो लक्ष्य निर्धारित किए गए वह अगले 50 वर्ष में भी प्राप्त नहीं होते , बहुत हद तक काम प्रकृति ने कर दिखाया लोक डाउन के बहाने ही सही। पूरी दुनिया में वायु प्रदूषण कम हुआ है। दुनिया कम से कम स्वच्छ हवा में सांस ले पा रही है, ओजोन परत पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ रहा है। हो भी क्यों न हो पूरी दुनिया लगभग जाम सी हो गई है। मनुष्य के क्रियाकलाप बंद हो गए हैं , मोटर कार, गाड़ियां ,हवाई जहाज , फैक्ट्रियां सब बंद है। प्रदूषण कम हुआ , जहां दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में एक थी कुछ दिनों से वहां की हवा में बहुत ही सुकून है।

‌ जंगलों में भी बहुत हद तक इंसानों ने घुसपैठ कर ली है।कोई जंगली जानवर अगर हमारे शहरों में आ जाए तो हम उसे क्या कहते हैं? घुसपैठया! जी नहीं घुसपैठ उसने नहीं कि हम उसके जंगल में घुस गए हैं। कोई भी जानवर इंसान पर कभी हमला नहीं करता वह उसकी मजबूरी होती है। उसका भी अपना परिवार है, उसका भी अपना घर और उसके हिसाब से जो उसे सही लगता है। अपने घर परिवार को बचाने के लिए प्राकृतिक रूप से करने के लिए स्वतंत्र।।

‌ क्या मनुष्य होने का यही मतलब है, कि पूरी पृथ्वी पर हमारा एकाधिकार हो, जी नहीं ना तो हमारा एकाधिकार था, और ना ही हो सकता है। एक छोटे से कोरोनावायरस ने हमारी दैनिक दिनचर्या को इतना प्रभावित किया कि जंगल के खतरनाक से खतरनाक जानवर नहीं कर सके।



‌हमें बहुत मजा आता है, सर्कस में जब कोई शेर करतब दिखाता है, बंदर, जिराफ, गेंडे ओर भी बहुत से जंगली जानवर सब को देख कर बहुत अच्छा लगता है। क्या आप जानते हैं ,शेरों  जो की जंगल का राजा है। उनके काबू में कैसे किया जाता है। मैं छोटी सी कहानी सुनाता हूं एक परिवार में एक शेर एक शेरनी और दो बच्चे थे। यह चारों एक पुराने खंडहर भी रहते थे, जहां पर वर्षों से कोई नहीं  था। खुश थे तभी अचानक वहां कुछ इंसानों का आना हुआ खंडार में कुछ बेशकीमती मूर्तियां और खजाने यह लोग इन चीजों का अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तस्करी करते थे। शेर चुपचाप छुप जाते थे उनको देखकर क्योंकि वह जानते थे कि सबसे बड़े जानवर आ चुके हैं, जिनसे पार पाना उनके बस की बात  नहीं।



हर संभव कोशिश की उन शेरों ने खुद को बचाने की परंतु किसी एक इंसान की नजर पड़ी उन पर और हमला कर दिया बंदूकों से शेर दहाड़ दहाड़ कर यही कह रहे थे, कि तुम्हें जो ले जाना है ले जाओ हमें क्यों मार रहे हो  परंतु इंसान के लालच की इंतहा नहीं होती उन्होंने शेर को मार दिया। शेरनी ने किसी तरह अपने एक बच्चे को मुंह में दबाकर भाग निकलने में कामयाब हो गई। एक बच्चा भाई छूट गया, उस बच्चे को पकड़कर सर्कस में भेज दिया गया, बचपन से ही शेर के बच्चे को बहुत टॉर्चर किया जाता था, उसे खाने को नहीं दिया जाता था। आपको याद तो होगा सभी जंगली जानवरों को आग से बहुत डर लगता है। क्या कभी आपने सोचा है, कि शेर आग से जलते हुए रिंग से कैस कूद जाता है ? जी नहीं शेर को मार मार कर टॉर्चर कर करके सिखाया जाता है। सोचो कितना तकलीफदेह  होगा यदि हमें ऊंचाई से डर लगे और हमें कोई यह कहे कि तुम यहां से अपने पैरों में रस्सी बांधकर कूद जाओ जी नहीं बहुत मुश्किल है।  कुछ ऐसा ही रहा होगा उनके लिए दिन-ब-दिन टॉर्चर करते करते उन्हें इस प्रकार तैयार किया जाता है कि वह हमारे मनोरंजन का साधन बन जाते हैं प्रकृति के वह अलंकार जंगलों में सुशोभित होने के लिए बनाया गया था वह हमारे मनोरंजन के साधन बन गए।



‌ पूरी पृथ्वी पर खाने की कोई कमी नहीं है, हां मैं मानता हूं कि मनुष्य के जीवन की कल्पना बिना मांसाहार के नहीं की जा सकती।  क्योंकि जब मनुष्य खेती करना नहीं जानता था। तो संभवतः शिकार किया करता था, वह कंदमूल पर जीवित था। परंतु फिर भी कुछ चीजें ऐसी हैं। जहां हमें खाने में संयम बरतना चाहिए हम अगर खुद को सभ्य मानते हैं, तो फिर हमें वह जंगली प्रवृति   छोड़ देना चाहिए। चीन में जहां कच्चा मांस खाने में कोई हर्ज ना हो जिंदा ऑक्टोपस निकलने की परंपरा हो तो क्या यह हमारे मनुष्य वहसी होने की हद नहीं है।
यह प्रकृति सभी जीव जंतुओं का घर है। जो काम मनुष्य प्राकृतिक संरक्षण के नाम पर बहुत सारे अंतरराष्ट्रीय संस्था बनाकर नहीं कर सका। वह प्रकृति ने कर दिया ,अब भी समय है। हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ठोस कदम उठाने चाहिए जिससे कि प्रकृति का दोहन अनुचित तरीके रोकना चाहिए।

3 टिप्पणियाँ

और नया पुराने