कोरोना वायरस, चीन और अर्थव्यवस्था। चीन की साजिश या संयोग?


कोरोना वायरस, चीन और अर्थव्यवस्था चीन की साजिश या संयोग।

इस वक्त पूरी दुनिया परेशान है, कोरोना वायरस को लेकर। एक देश है ,जो बहुत ही जल्दी इस त्रासदी से ऊभर गया वह जश्न मना रहा है। अजीब बात यह है, कि यह वही देश है जहां से कोरोना का पहला मामला मिला था और कहा जा रहा है, कि यह वायरस चमगादड़ या पैंगोलिन जैसे जानवरों से फैला, परंतु चीन में जिस तरह से कोरोना को कंट्रोल कर लिया गया। वहां अभी तक कुल 80 हजार के करीब मामले सामने आए हैं, जिसमें से 76 हजार से ज्यादा लोग ठीक हो गए वहीं तीन हजार के करीब  लोगों की मौत हुई है। और डेढ़ हजार के लगभग लोग हॉस्पिटल में जिनका इलाज चल रहा है। वहां एक्टिव केस डेढ़ से दो हजार ही है ऐसे में चीन के लोग कोरोनावायरस पर विजय के रूप में खरगोश चमगादड़ पैंगोलिन जैसे जानवरों की फिर से दावत उड़ा रहे। क्या चाइना के लोग सुधरना नहीं चाहते क्या यह कोई चाल है। विश्व की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करके चीन की अर्थव्यवस्था को नंबर 1 लाने के लिए? चलिए विचार करते हैं कुछ तथ्यों पर।






वैश्विक अर्थव्यस्था पर असर -

कोरोना वायरस का कहर जिस प्रकार पूरी दुनिया में परसा हुआ है। आगामी कुछ वर्षों में आर्थिक मंदी का दौर रह सकता है। यदि ऐसा होता है तो आगामी आर्थिक मंदी के परिणाम  2008 के आर्थिक मंदी के परिणाम से बहुत ही व्यापक होंगे। विश्व के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश जिसमें अमेरिका की अर्थव्यवस्था सबसे मजबूत और पहले नंबर पर रहे दूसरे नंबर पर चीन है। तीसरे नंबर पर जापान चौथे नंबर पर जर्मनी पांचवें स्थान पर भारत, ब्रिटेन और फ्रांस क्रमशः छठे और सातवें स्थान पर है। कुछ महीनों पहले तब भारत छठे स्थान पर था। भारत जहां 2022 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना देख रहा था। वहां अब उसे फिलहाल अपनी मौजूदा अर्थव्यवस्था को संभालने की चुनौती होगी।


अर्थव्यवस्था को लेकर वैश्विक चिंता-
                                                     जब पूरी दुनिया एक ऐसे दुश्मन से जूझ रही है जो बहुत ही सूक्ष्म व नया है। बीमारी के रूप में ही सही परंतु इतने व्यापक पैमाने पर इसने तबाही मचाई है, कि इसके असर को विश्वयुद्ध से भी व्यापक माना जा रहा है। स्वाभाविक है ,कि अगर इसे विश्वयुद्ध से भी अधिक महत्व मिल रहा है तो अर्थव्यवस्था पर भी इसके घातक परिणाम होंगे क्योंकि चिंता इसलिए भी विकराल रूप ले लेती है। जब 2 दिन पहले जर्मनी के एक प्रांत के वित्त मंत्री ने आत्महत्या कर ली क्योंकि जिस तरह जर्मनी और बाकी यूरोप में कोरोनावायरस से तबाही मचाई स्वाभाविक तौर पर आने वाली आर्थिक मंदी से पार पाना किसी भी देश के लिए मुश्किल हो सकता है,वहीं  अगर बात करें अमेरिका की तो अमेरिका ने भी कुछ दिनों पहले 200000 करोड अमेरिकी डॉलर जो कि भारतीय रुपयों में 151 लाख करोड रुपए के राहत पैकेज देने की घोषणा की जिससे कि वैश्विक शेयर बाजार में थोड़ा उत्साह  जरूर देखने को मिला
भारत सरकार ने भी इस वैश्विक चुनौती निपटने के लिए 170000 करोड रुपए के आर्थिक पैकेज की घोषणा की जिसका उपयोग महामारी से निपटने के लिए किया जाएगा।
जहां पूरी दुनिया के शेयर बाजार चाहे वह जापान का निक्केई हो भारत का सेंसेक्स या अमेरिका का डाऊ जोंस  में गिरावट का दौर जारी है। वही गिरावट के इस दौर में भारत की जीडीपी के 40 % के बराबर संपत्ति अभी तक शेयर बाजार में डूब चुकी है। मूडीज भी कह चुकी है कि कोरोनावायरस की वजह से दुनिया में आर्थिक सुनामी जैसे हालात हैं हालांकि।जिस प्रकार हमने देखा कि अमेरिका भारत जैसे कुछ देशों ने आर्थिक राहत पैकेज की घोषणा की है जिससे कि बाजार थोड़ा समला जरूर परंतु यह लॉक डाउन अगर भारत के साथ दुनिया भर में इस प्रकार एक डेढ़ महीने से ज्यादा जारी रहा जारी रहा तो दुनिया की अर्थव्यवस्था तबाही की कगार पर होगी।


चीन को फायदा या नुकसान -
                                           अब सवाल यह उठ रहा है, कि वैश्विक अर्थव्यवस्था अगर तबाही के कगार पर होगी तो ऐसे में क्या किसी देश को फायदा हो सकता है? यहां पर जिस प्रकार के हालात अभी है। चीन की तरफ शक की सुई जाना जायज है, जहां अभी पूरी दुनिया में लॉक डाउन के हालात है, वहीं चीन का वुहान शहर जो की हब्रोई प्रांत में है। जहां कोरोनावायरस का पहला मामला मिला बहुत ज्यादा व्यापक असर था। उस शहर और प्रांत को खोल दिया गया है, चीन में कहीं भी यह वायरस नहीं फैला हब्रोई प्रांत को छोड़कर यह ना तो शंघाई तक गया ना बिजिंग में किसी को संक्रमित किया परंतु पूरी दुनिया में यह संक्रमण बहुत तेजी से पहुंच गया। इस दौरान चीन में फैक्ट्रियों में उत्पादन का कार्य अन्य जगह पर जारी रहा तथा पहले की अपेक्षा ज्यादा उत्पादन कार्य किया गया हां इस दौरान वुहान शहर जरूर बंद रहा। अब चीन पूरी दुनिया को वेंटिलेटर, मास्क दवाइयां और भी कहीं जरूरत की चीजें बेच रहा है। जहां पूरी दुनिया में फैक्ट्रियां बंद है, भारत में भी यही हालात है। करीब 15 दिन हो गए हैं किसी भी प्रकार के उत्पादन कार्य नहीं हो रहे कुछ जरूरी चीजों को छोड़कर। अमेरिका में जैसे कि हम देख चुके हैं कि डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही कह दिया है कि अमेरिका में 200000 मौतें हो सकती है, और हम इसे एक लाख तक सीमित करने की कोशिश करेंगे, यूरोप पूरी तरह बर्बाद हो रहा है।



तो क्या यह चीन की आर्थिक महाशक्ति बनने की सनक का नतीजा तो नहीं? -
                        अगर आपको याद हो तो 1958 के बाद तब कम्युनिस्ट चीन का गठन हुआ और माओ चाहता था, कि चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बने और उसकी इस चालक ने उसे प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का एक और मौका दिया फोर फेस्ट नाम का एक अभियान चलाया। जिसके तहत गौरैया ,चूहे, मच्छर और मक्खी को चीन से खात्मा करने का लक्ष्य रखा गया था। गौरैया और चूहे अधिकतर अनाज खा जाते थे, मच्छर और मक्खियों अधिकतर लोगों को बीमार कर देते है। उसका यह मानना था, कि इससे अनाज की बचत होगी लोग कम बीमार होंगे तो चीन की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी नतीजा यह हुआ कि प्रकृति संतुलन बिगड़ा और अगले एक-दो साल में भयंकर अकाल पड़ा।
हम एक अन्य उदाहरण से समझ सकते हैं कि जिस प्रकार अमेरिका और रूस इजराइल जैसे देश दूसरे देशों को हथियार बेच कर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किए हुए हैं, क्या होगा यदि पूरी दुनिया में शांति की स्थापना हो जाए और किसी को हथियार की जरूरत ही ना हो तो यह देश बर्बाद हो जाएंगे। इन देशों की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी है, कि दुनिया के किसी ना किसी कोने में अशांति बनी रहे या युद्ध होते हैं। अधिकतर आतंकवादियों के पास अमेरिका और रूस के हथियार मिलते हैं, कहां से आते हैं? इसी सिद्धांत पर आगे देखें तो चीन ने उस युद्ध की शुरुआत कर दी है। जिसका अंदाजा लगाया जा सकता जैविक हथियारों का उपयोग करके उसने अपने व्यवस्था को मजबूत बनाने का तरीका खोज लिया।

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