क्या मोदी सरकार अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर असफल ?

कईबार हम किसी समस्याको हल करते समयइस बात पर ध्यान नहींदेते की कही हमारासमाधान कोई और समस्या तोउत्पन्न नहीं कर रहा? वहसमाधान फौरी तौर पर सार्थक सिद्धहो सकते हैं,परंतु लंबे समय अंतराल में उसके क्या उचित अनुचित परिणामप्राप्त होंगे इस पर भीगौर करना आवश्यक होता हे।
          आजकल भारतीय औद्योगिक घरानों व्यापारी वर्गमें बाजार को लेकर अनिश्चितताबरकरार है। परंतु क्या वास्तव में भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़रही है। फिर या हमारी उम्मीद बढ़ती जा रही है,जो किसी भी चीज में नकारात्मकतासहन नहीं कर सकतीक्यायह हमारी कमजोरी है?
                       सर्वप्रथम हम यह जानले कि आखिर मंदीका अर्थ क्या है? जब अंतरराष्ट्रीय स्तरया राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं औरसेवाओं के उत्पादन मेंनिरंतर गिरावट हो रही होवह सकल घरेलू उत्पाद कम से कम3 महीने में नकारात्मक वृद्धि दर रही होयदि 21वीं सदी के दौर कीबात करें तो 2008 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक मंदीका सामना विश्व को करना पड़ाजिसका असर भारत पर कम हीदेखने को मिला थातो क्या एक दशक पश्चातफिर वही दौर देखने को मिलेगाक्याहमारी अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत और टिकाऊ है? जो किसी भी मंदी कोझेल सकती है

हालही में जारी 2019-20 की प्रथम तिमाहीका आंकड़ा जारी हुआ, जिसमें भारत की आर्थिक वृद्धिदर 5% रही बीते वित्तीय वर्ष में जहां इसी तिमाही में यह 8% थीअर्थशास्त्रियों के अनुसार यहपिछली 25 तिमाहियों में सबसे कम वृद्धि दरहैतो क्या यामंदी के संकेत हैं? संभव है ! परंतु हमारे पास मौका है,आने वाली तिमाहियों में इसे कवर करने का मौका हे ऑटोसेक्टर ,मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर ,बैंकिंग सेक्टर आगामी त्योहारी सीजन में हो सकता है, इन सेक्टरों में उछाल देखने को मिले जोकि अर्थव्यवस्था को संभालने मेंकाफी अहम किरदार अदा करेंगे
                       
 
सरकार को आगामी आर्थिकमंदी की आहट पहलेही हो चुकी हे।इसी कड़ी में सरकार ने RBI से 1.76 लाख करोड रूपया लियाजिसमें से 1.20 लाख करोड रुपए तो आरबीआई काशुद्ध मुनाफा हैपरंतु 56000 करोड रुपए अतिरिक्त चौकी आपातकालीन फंड से लिया गया, जो इतिहास में पहली बार हुआक्या इन 56000 करोड की आवश्यकता थी? है या फिर 5 ट्रिलियनकी अर्थव्यवस्था बनने के लिए जल्दबाजीमें लिया गया फैसला आपातकालीन फंड यानी जो आपातकाल मेंकाम आए क्या हमारीस्थिति आपातकालीन है? एक तरफतो सरकार आश्वस्त करती है, कि हमारी अर्थव्यवस्थाकिसी भी मंदी सेनिपटने के लिए मजबूतऔर सशक्त है
विगत  वर्षों में लिए गए सरकार केफैसले जैसे नोटबंदी और जीएसटी सेभी बाजार में असर हुआ हैपरंतु मैंनहीं मानता कि नोटबंदी काअसर अब भी होगाहां जीएसटी में सुधार की आवश्यकता है, क्योंकि इसकी वजह से बाजार मेंधन की तरलता मेंकमी आई हैअर्थव्यवस्थामें धन की तरलताबनी रहना आवश्यक हैबिल भुगतान समय पर ना होना पैसा समय पर ना मिलनाजिसका सीधा असर छोटे तथा मध्यम उद्योगों पर होता है, जो कि किसी भीदेश की विकास कीनींव होती हैजीएसटी की जटिलता केकारण बाजार के बहुत बड़ेहिस्से में धन का फ्लोया तो कम हुआया रुका हुआ है, जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा

                                                            वैसे
किसी भी देश कीअर्थव्यवस्था घरेलू मोर्चों के अलावा अंतरराष्ट्रीयहालात पर भी निर्भरकरती हैजैसे पेट्रोलियम की कीमतें,इरानसंकट, उत्तर कोरिया संकट, अमेरिका-चाइना आर्थिक युद्ध या और भीइस प्रकार की समस्या हेयह समस्याएं पहले भी थी आजभी है, और आगे भीरहेगी तो जरूरी है, कि हमें हमारे आंतरिक व्यवस्था को इतना मजबूतकरें कि इस परकिसी भी अंतरराष्ट्रीय मंदीका असर कम होहालांकिआजकल के वैश्विक परिदृश्यमें कोई भी देश स्वतंत्ररूप से अपने अर्थव्यवस्थाका संचालन नहीं कर सकताअंतरराष्ट्रीयस्तर पर उसका कहींना कहीं प्रभाव जरूर होता हैपरंतु वर्तमानमें जो भी अंतरराष्ट्रीयसमस्या है, वह इतनी व्यापकनहीं है, कि आर्थिक मंदीका कारण बने हां कुछ असर पड़ सकता हैफिलहाल अमेरिका चाइना के मध्य तनावका फायदा भारत जैसे विकासशील देशों को मिलना चाहिएतो कमी कहां रह गई? किआज भी हम अपनेअर्थव्यवस्था को लेकर चिंतितहैंनॉमिनल जीडीपी के आधार परजहां हम 2018 में विश्व में पांचवें स्थान पर थे आजहम सातवें स्थान पर हैं चलिएबात करते हैं, क्रय शक्ति के आधार परकहने को हम दुनियाकी तीसरी सबसे बड़ी क्रय शक्ति के आधार परअर्थव्यवस्था हैपरंतु प्रति व्यक्ति आय के आधारपर जहां नॉमिनल जीडीपी में हमारा स्थान 142  हैवहीं क्रय शक्ति के आधार पर119 वां स्थान है इससे यह बात तोसाबित होती है, कि हां मेरादेश विकास कर रहा हैलेकिन व्यक्तिगत विकास दर बहुत कमहै या यूं कहेंकि भारत के 60% लोग जो मध्यम निम्न वर्ग में आते हैं उनकी क्षमता बहुत कम है जिसेबढ़ाने की आवश्यकता है
चलिएएक उदाहरण लेकर मान लीजिए एक व्यक्ति जिसकीमासिक आय ₹80000 हो वहां अपनेआवश्यकता की पूर्ति केबाद भोग विलास की वस्तुओं परखर्च करेगाउसके खर्च की कोई सीमाना होते हुए भी एक सीमापश्चात खर्च करनाबंद कर देगा| वहउसका पैसा या तो बैंकमें ही पड़ा रहेगाजो कि बाजार मेंप्रत्यक्ष रूप से नहीं आएगा

अबबात करते हैं, एक आम नागरिककी जिसकी मासिक आय ₹10000 हो उसकी आवश्यकताहै,भी अधिक हैवह चाहता है, कि अगले महीनेवह मोटरसाइकिल खरीदे परंतु पिछले कई महीनों सेउसकी तनख्वाह रुकी है ऐसे कई लोग हैंजो वाहन खरीदना चाहते हैं, और उनकी क्रयशक्ति है, परंतु उनके हाथ में पैसा ना होने केकारण वह नहीं खरीदपा रहे क्या यह कारण नहींहै, ऑटो सेक्टर में मंदी का? यही नियम लागू होता है अन्य वस्तुओंपर भी जैसे इलेक्ट्रॉनिकउपकरण लग्जरी आइटम या फिर खाद्यवस्तुएं ही क्यों नाहो अगर व्यक्ति के क्रय शक्तिहोगी तो वह खरीदेगाभारत में एक धनी वर्गऐसा भी है, जिसकेपास असीमित धन हैऔरवह धन को खर्चनहीं कर पा रहाहै,और एक ऐसावर्ग जिसकी आवश्यकता हैं , परंतु धन नहीं हैयहां बात अमीरी और गरीबी कीखाई की है ,जोकि लगातार बढ़ती ही जा रहीहै

सरकारकी कई योजनाएं हैंजिनमें से अधिकतर कामैं समर्थन करता हूं परंतु व्यक्तिगत तौर पर मेरा माननाहै,कि योजनाएं केवलएक समय तक हि  लाभ पहुंचा सकती है जिनमें से अधिकतर योजनाएंतो केवल राजनीतिक लाभ के लिए दीजाती है, जैसे कि कर्ज माफकरना फ्री में कोई चीज देना या फ्री कीचीजें बांटने की बात करनाजैसा कि मैं पहलेकह चुका हूं कि सरकार केकुछ योजनाएं अच्छी है उनका मैंसमर्थन करता हूं
सरकारके लिए आवश्यक है, कि वह फिजूलखर्चीबंद करें किसी भी प्रकार सेमुफ्त की आदतन जनताको ना डालें कुछभी हो आप कोईभी योजनाएं लाएं परंतु भविष्य के लिए दीर्घकालीनयोजनाएं बनानी आवश्यक हैयह अत्यंतआवश्यक है ,कि सरकार इसबारे में विचार करें कि आम आदमीकी क्रय शक्ति कैसे बड़े यदि आम आदमी कीक्रय शक्ति बढ़ेगी तो उसे सरकारसे किसी भी प्रकार कीमुफ्त की खैरात कीआवश्यकता नहीं होगी और संभवत हमविकासशील से विकसित बननेकी ओर  कदमबढ़ाने के काबिल होसकेऔर यदि हमभविष्य में महाशक्ति बनने का सपना देखतेहैं,और उम्मीद करतेहैं, कि हमारी अर्थव्यवस्था5 ट्रिलियन की होगी तोआवश्यक है, कि आम व्यक्तिकी क्रय शक्ति बढ़ाई जाए तथा यह सुनिश्चित कियाजाए कि बाजार मेंधन का प्रवाह ना रुके। 

7 टिप्पणियाँ

  1. राजनीति में सभी चीजे आश्यक है । सर जी यदि केवल विकास की की बात करें तो यह भी जान लो कि कश्मीर मुद्दा देश की सबसे बड़ी असंभव चुनौती थी। जिस का सीधा असर हमारी अर्थ्यवस्था पर हमेशा पड़ता रहा है जिसे भले ही राजनीति स्टंट के लिए ही सही पर कोई तो हल मिला तो है । आगे आने वाले समय में सकारात्मक असर देखने को जरूर मिलेगा। क्या राय है इस बारे में।

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    1. शायद अब आवश्यकता है, हमें यह समझने की कि राष्ट्रवाद अति और राष्ट्रवाद में अंतर होता है| कश्मीर मुद्दा जोकि राष्ट्रवाद से जुड़ा है ,भारतीय होने के नाते मैं उसका समर्थन करता हूं | परंतु राष्ट्रवाद के नाम पर आप हर मुद्दे पर कश्मीर या हिंदुत्व का मुद्दा डाल देते हो तो अफसोस होता है, कि आप झूठ के चश्मे से सच को अस्वीकार करते हो |

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  2. Sahi kaha arthavyavstha thodi bigdi he but Mandi jaisi koi bat nahi mujhe sarkar par pura bharosa he

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