“आधुनिक परिपेक्ष मे पत्रकारिता ओर इसकी विश्वसनीयता "

                 “आधुनिक परिपेक्ष मे पत्रकारिता ओर इसकी विश्वसनीयता”

 


15 अगस्त 1947 की आधी रात जब पुरी दुनिया गहरी निंद मे थी। भारत अपने नये सवेरे के उदय का इंतजार कर रहा था। आजादी कि खुशी के साथ –साथ हमारे सामने एक अनिश्चित भविष्य भी था
, बिल्कुल एक कोरे कगज कि तरह जिस पर जो लिखा जाता वही हामारे भविष्य के निर्माण का अधार होता। हमारे देश के तत्कालीन नेता, जनप्रतिनिधियो ने बाबा सहाब अम्बेडकर के नेत्रत्व मे एक बहुत हि लचिले परन्तु कठोर सन्विधान की रचना कि।
तत्पश्चात हम एक उज्जवल भविष्य कि ओर आशा ओर उम्मीद के साथ उत्साह से बड चले। सम्विधान मे सभी नागरिको के साथ सम्वेधानिक संस्थाओ की भी अपनी जिम्मेदारी है। 


किसी भी लोकतंत्र को मजबुत बनाने में उसके 4 मह्त्वपूर्ण स्तंभ का मजबुत होना अवश्यक हे।ये चार स्तंभ हे- कार्यपालिका, व्यवास्थापालिका, न्यायपालिका, एक अन्य स्तंभ हे पत्रकारिता, जिस पर लोकतंत्र टिका होता हे। कोई भी स्तंभ का कमजोर होना लोकतंत्र के लिये खतरनाक हे। आज हम महत्वपूर्ण भाग मिडिया कि बात करते हे। हमारे देश मे कार्यपालिका , व व्यावस्थापालिका पर हमेशा सवाल उठते रहे हे। न्यायपालिका भी इससे अछुती नही है, यहां मेरा मकसद न्यायपालिका का अपमान करना या उसकी अवहेलना करना कतई नही हे। एक अन्य स्तंभ मिडिया जिसका कार्य अन्य तीन स्तंभों को आम जन तक जोड्ना हे।

देश में आजादी के आंदोलनों में भी मिडिया की महत्वपूर्ण भुमिका थी। 1857के पह्ले तक भारत के जनमानस के मध्य जन चेतना का आभाव था। जिसके कारण सन 1857 की क्रांति कि विफलता। तत्पश्चात आवश्यकता महसुस हुई कि आम जन तक भी इस बात कि जानकारी हो की देश की वास्तविक स्थिति क्या हे? ओर जनचेतना व लोगो को जगरुप करने का काम समाचार पत्रो से हुआ।आजादी के पश्चात  स्थिति बदल गई व रेडियो पर समाचार का प्रसारण होने लगा, जो पत्राचार का एक नया मध्यम था। परन्तु तत्कालीन समय मे इनका दुरुपयोग ना के बराबर था।साधन सिमित थे परंतु विश्वसनीय थे।

 
आधुनिक पत्रकारिता -
                   परंतु आज का मिडिया लोकतंत्र का चोथा स्तंभ बानने के बजाये
, यह अन्य तीन स्तम्भो को कमजोर कर रहा हे।ताजा घटनाक्रम का एक उदाहरण लेते हे। जब हमारे देश के जांबाज विंग कमांडर अभिनंदन को पाक अर्मी ने पकड लिया तो उनसे कुछ सवाल पुछे गये-
पाक मेजर  -  अपका नाम क्या हे
?
विंग कमंडर – मेरा नाम विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान
पाक मेजर -  आप कहा रहते हो
? हमारे जंबाज का निडर अंदाज मे जवाब था , साँरी मेजर मे नहि बता सकता। कोन सा प्लेन उड़ा रहे थे? फिर वही जवाब साँरी मेजर मे नही बता सकता। फिर पुछा गया कि कोन सा प्लेन उडा रहे थे? तो फिर निडरता के साथ वही जवाब, बिना अपनी जान कि परवाह किये बग़ैर। ओर दुसरी ओर हमारी मिडिया उसी वक्त अभिनंदन के घर से लाइव रिपोर्टिंग कर उनकी लोकेशन की जानकारी सहित अन्य तमाम सूचनाएँ जो सीमा पार हमारे दुश्मन हमारे बहादुर जवान से जानना चाह्ती थी। क्या ये मिडिया कि मुर्खता नही हे? ईन्हे बस अपनी T.R.P की फिक्र हे।
भारत पाक के मध्य तनाव को बडाने मे मीडिया ने जितना अह्मकिरदार निभाया उतना शायद अन्य किसी ने किया हो। पुलवामा हमले का बदला बालकोट पर एयर स्ट्राईक कर ले लिया गया मिडिया को यह जानकारी देश को देना अवश्यक थी परन्तु मिडिया इससे कई कदम आगे बड़ गया ओर अपने न्युज रुम को उन्होने वार रुम मे तब्दील कर दिया, क्यु? केवल T.R.P के लिये बार बार युद्ध कि खबर दिखाने से माहौल सत्तापक्ष की ओर बनने लगा ओर विपक्ष क़ो लगा की इसका पुरा फायदा चुनाव मे सत्तापक्ष को मिलता देख उन्होने सबुत की राजनिति सुरु कर दी। फिर एक नयी बहस कौन हे इसका जिम्मेदार? अगर मिडिया अपना कर्तव्य पालन जिम्मेदारी से व निश्पक्छ्ता  से करती तो शायद हम चुनावी मुद्दो से भटकते नही.। मिडिया ने यहा परिपक्वता के बजाय अतिवादीता क परिचय दिया सायद अब भि किसी न्युज चैनल पर यही खबर चलाई जा रही होगी, इनका मकसद केवल T.R.P. बडाना हे।


एक अन्य उदाहरण ले तो आज कल किसी भी मुद्दे को लेकर ये मिडिया वाले 4 लोगो को जो इतने मुर्ख होते है कि उनकी तुलना जोकर से भी नही की जा सकती। एक बारगी जोकर हमें हँसा सकता हे परंतु इन लोगो कि बहस से केवल असहिष्णुता
, कट्टरवाद, व सामाजिक विभाजन को बडावा देते है। मैं किसी भि प्रकार की बहस का विरोधी नही हूँ परंतु क्या इसके कोई नियम या मर्यादा नही होनी चाहिये? मुर्ख लोगो को T.V. डिबेट मे बुलाने से बेहतर होगा आप किसी विषय विशेषज्ञ को बुलाये ताकी लोगो को मुल मुद्दो की जानकारी के साथ-साथ किसी ठोस निर्णय पर भी पहुँचा जा सके। आज कल T.V. पर जो बहस होती है वो ना तो तथ्यात्मक होती हे ना नैतिक ना मौलिक ओर ना ही उसमे किसी प्रकार का ज्ञान पाया जाता हे, वहा केवल अराजकता, उत्तेजना व लोगों को उकसाने वाली होती हे।
आज के परिपेछ मे पत्रकारिता का संदर्भ --
                                    मिडिया का कार्य आम लोगों तक सही जानकारी पहुंचाना
, गलतफहमी को दुर करना, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक मुद्दो पर मुर्ख लोगो के बजाय विषय विशेषज्ञो के साथ सार्थक बातचीत हो। मिडिया का काम सुचओ को आम जन तक पहुंचाना हे , ना कि अपनी व्यक्तिगत राय या विचार लोगो के उपर थोपना। आम लोगो को भि समझना चाहिये की सही क्या हे? गलत क्या हे? क्युंकी मिडिया भी वही दिखाता हे जो आप लोग देखना चाह्ते हो।
ओर लोकतंत्र के चारो स्तंभ व्यव्स्थापलिका
, कार्यपालिका , न्यायपालिका , मिडिया हो परंतु इन स्तम्भो कि नीव यहां के लोगो से ही मज़बूत है यही लोकतन्त्र हे।


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