हांगकांग की स्वायत्तता और चीन।


हाल ही में हांगकांग स्वायत्तता की मांग को लेकर सुर्खियों में रहा है। जहां व्यापक तौर पर लोकतंत्र को बचाने तथा स्वायत्तता बरकरार रखने के लिए लगातार आंदोलन चलाए जा रहे हैं। परंतु आखिर हांगकांग का मामला है, क्या? तो चलिए जानते हैं ,हांगकांग के बारे में।



     हांगकांग एक ऐसा महानगर जिसका नाम सुनकर ही तीसरी दुनिया का एहसास होता है। जिसे यदि में पूर्व का स्वर्ग कहूं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, उच्च जीवन शैली,अंतरराष्ट्रीय महानगर तथा दुनिया का व्यापारिक केंद्र जो अपने आप में इस महानगर को खास बनाता है। परंतु तमाम विशेषताएं लिए आज हांगकांग किसी और कारण से सुर्खियों में हैं,कई दिनों से हांगकांग में प्रदर्शन हो रहे हैं।और हांगकांग की जनता चीन द्वारा लाए गए नए प्रत्यर्पण कानून का विरोध कर रही है,  तथा इसे अपनी  स्वायत्तता पर हमला बता रही है। हांगकांग दरअसल जनवादी गणराज्य चीन का एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र है।जिसके उत्तर में चीन का ग्वांगजोंग व अन्य तीनों और पूर्व,पश्चिम तथा दक्षिण में दक्षिण चीन सागर से घिरा हुआ है ।तथा चीन की मुख्य भूमि से दूर कहीं टापू के समूह के रूप में स्थित है। हांगकांग में आधिकारिक भाषाएं कैंटोनी व  अंग्रेजी के साथ मंंदारीन भी उपयोग में लाई जाती है।हांगकांग को विशेष प्रशासनिक क्षेत्र का दर्जा प्राप्त होने के कारण इसकी अपनी विधान परिषद्  है,जो कि वास्तविक रूप से चीन द्वारा ही नियंत्रित होती है। हांगकांग कुल 1104 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ एक विशाल महानगर है। जहां लगभग। 73 लाख लोग रहते हैं ,जिसकी मुद्रा हांगकांग डॉलर (HKD) है ,और चीन की मुद्रा युआन  है। हांगकांग एक महानगरीय प्राकृतिक बंदरगाह होने के साथ आज एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र भी है।


हांगकांग का इतिहास-
                              हांगकांग पर चीन के शासकों का ही आसान रहा है परन्तु 1842 के दौरान चीन के  चिंग साम्राज्य से अफीम को लेकर युद्ध हुआ। व्यापार तथा मुनाफे कि वजह  से ब्रिटेन चीन से अफीम का व्यापार करना चाहता था। परंतु तत्कालीन शासक के द्वारा अफीम पर प्रतिबंध लगाने से ब्रिटेन चीन के मध्य युद्ध हुआ जिसे अफीम युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। ब्रिटेन की औपनिवेशिक मानसिकता के साथ जब ब्रिटेन ने पूरी दुनिया में व्यापार के उद्देश्य से औपनिवेशिक कॉलोनियां बसाना शुरू की तत्कालीन भारत में भी अंग्रेजों ने अपनी व्यापारिक महत्वकांक्षा पूरी करने के लिए कॉलोनियां बसाई जहां से वह समुद्र के मार्ग से व्यापार कर सके ऐसे ही चीन का एक छोटा इलाका आज का हांगकांग जो अपने आप में एक प्राकृतिक बंदरगाह था। तथा जहां से ब्रिटेन पूर्वी एशिया से  यूरोप तक व्यापार किया जा सकता था।  हांगकांग को 1842 में ब्रिटेन ने अपने कब्जे में  लेकर उस पर अपनी व्यापारी कॉलोनी बसाई इस प्रकार दक्षिण चीन सागर चीन व अन्य देशों के  साथ व्यापार करने लगा अभी तो ब्रिटेन चीन पर पूर्ण रूप से कब्जा नहीं कर सका जिस तरह उसने भारत पर कब्जा किया थ। पुनः 1898 में चीन से ब्रिटेन कि संधि हुई व हांगकांग को 99 साल की लीज पर के लिया। अतः हांगकांग 1842 से 1997 तक ब्रिटेन का उपनिवेश रहा इस दौरान 1941 के समय द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यह जापान के नियंत्रण में भी रहा।द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त होने के पश्चात हांगकांग पुनः ब्रिटेन के अधीन हुआ। हांगकांग  ब्रिटेन का उपनिवेश था, तथा चीन का इस पर कोई हस्तक्षेप नहीं था। जहां चीन कम्युनिस्ट सरकार थी। वही हांगकांग जो कि व्यापारीक व ओद्यौगिक केंद्र के रूप में 1950 तक विकसित हो चुका था, जो कि हांगकांग की अर्थव्यवस्था में उछाल के लिए एक बहुत ही बड़ा कारण था।बढ़ती आर्थिक प्रगति के कारण कई लोग रोजगार की तलाश में हांगकांग में आकर बसने लगे वह धीरे-धीरे हांगकांग विकास की ओर बढ़ चला।

ब्रिटेन व हांगकांग के मध्य संधि-
                                            हांगकांग का चीन में विलय एक देश दो नीति के तहत ही हुआ था।जब ब्रिटेन कि हांगकांग पर 99 साल की लीज 1997 में खत्म होने वाली थी। इसी दौरान चीन की ओर से हांगकांग के हस्तांतरण की मांग की जाने लगी तत्कालीन ब्रिटिश पीएम मार्गरेट थैचर तथा चीन ने इस पर 19 दिसंबर 1984 को संधि पर हस्ताक्षर किए इस संधि को हांगकांग ट्रांसफर एक्सचेंज घोषणा पत्र भी कहा जाता है। 1997 में 99 वर्ष की लीज समाप्त होते ही ब्रिटेन ने चीनी कम्युनिस्ट सरकार को एक देश दो नीति के तहत हांगकांग सौंप दिया।

क्या है ,देश दो नीति का सिद्धांत?
                                             चीन में कम्युनिस्ट सरकार तथा जहां लोकतंत्र नहीं है इसके विपरीत हॉन्ग कॉन्ग ट्रांसफर एक्सचेंज घोषणा पत्र के अनुसार हांगकांग के विदेश व रक्षा मामले जो कि चीन के क्षेत्राधिकार में चले गए वह अन्य सभी आंतरिक मुद्दों पर हांगकांग की स्वायत्तता बरकरार रही। ब्रिटेन व चीन के मध्य संधि आगामी 50 वर्षों तक यानी 2047 तक के लिए है।जिसमें चीन ने हांगकांग की स्वायत्तता को एक देश दो नीति के साथ बरकरार रखने का वादा किया। परंतु इससे पहले 2014 में भी चीन ने वहां की विधान परिषद के चुनाव में हस्तक्षेप का प्रयास किया। जिसके परिणाम स्वरूप लोकतंत्र समर्थकों ने अंब्रेला मूवमेंट शुरू किया जो कि व्यापक तौर पर हांगकांग की चीन के प्रति नाराजगी को जाहिर करता है।

हांगकांग में विरोध प्रदर्शन-
                                 हांगकांग में विरोध प्रदर्शन की बात नई नहीं है ,इससे पहले भी 2014 में अंब्रेला मूवमेंट नाम से प्रदर्शन हो चुका है। चीन ने सितंबर, 2014 में हांगकांग को वर्ष 2017 में मुख्य अधिशासी (चीफ एक्जीक्यूटिव) चुनने का प्रस्ताव दिया किंतु इसके लिए हर किसी को अपनी दावेदारी पेश करने का अधिकार नहीं है।चीन की ‘स्टैंडिंग कमेटी ऑफ नेशनल पीपुल्स कांग्रेस’ (NPCSC) ने हांगकांग के प्रस्तावित चुनाव सुधारों पर अपने निर्णय में कहा कि हांगकांग के भावी चीफ एक्जीक्यूटिव के चयन के लिए एक 1200 – सदस्यीय नामांकन समिति दो या तीन उम्मीदवारों का नाम बहुमत से प्रस्तावित करेगी। हांगकांग की जनता इन्हीं दो या तीन उम्मीदवारों को वोट दे सकेगी।इस प्रकार चीन ने खुले नामांकन की मांग को ठुकरा दिया। चीन सरकार द्वारा उम्मीदवार पहले से ही तय करने की घोषणा से हांगकांग में लोकतंत्र की मांग करने वालों की उम्मीदों को झटका लगा। हांगकांग के इस लोकतंत्र समर्थक आंदोलन में, छात्र संगठन‘स्कॉलरिज्म’के संयोजक 18 वर्षीय जोशुआ वांग (Joshua Wong) का नाम विशेष रूप से चर्चित हुआ
उसे ‘हांगकांग का गांधी’ कहा जाने लगा।

6 सितंबर से हांगकांग में लोकतंत्र के लिए विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला प्रारंभ हुआ।‘हांगकांग फेडरेशनऑफस्टूडेंट्स’,‘स्कॉलरिज्म’तथा‘ऑकुपाई सेंट्रल विथ लव एंड पीस’ जैसे संगठनों के बैनर तले छात्रों एवं युवाओं ने ‘नागरिक अवज्ञा’ आंदोलन प्रारंभ कर दिया।हांगकांग सेंट्रल गवर्नमेंट कॉम्प्लेक्स‘सिविक स्क्वायर’(Civic Square) , काजवे बे (Causeway Bay),  काक (Mong Kok) तथा अन्य महत्त्वपूर्ण स्थानों पर छात्रों ने घेराव एवं नाकेबंदी कर प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारियों की संख्या लाखों में पहुंच गई। इस दौरान प्रदर्शनकारी अंब्रेला लेकर कल से बाहर प्रदर्शन करने निकले अतः यह आंदोलन अंब्रेला आंदोलन के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

चीन का नया प्रत्यर्पण बिल-
                                      अंब्रेला मूवमेंट के दौरान कई प्रदर्शनकारियों को चीन ने गिरफ्तार कर लिया तथा उन्हें जेल में बंद रखा चीन का नया प्रत्यर्पण दिल ऐसे कैदियों को चीन को प्रत्यार्पित करने में मदद दिलाएगा, जो कि हांगकांग में रहते हैं। फिलहाल हांगकांग की स्वायत्तता की वजह से किसी भी अपराधी को चीन हांगकांग से बाहर नहीं ले जा सकता ना ही किसी और देश को प्रत्यार्पित कर सकता है । चीन के लोकतंत्र समर्थक आंदोलनकारियों का कहना है, कि चीन का नया प्रत्यर्पण बिल का वहां आंदोलन कर रहे लोगों पर इसका असर होगा जिसके बहाने चीन किसी भी व्यक्ति को उठाकर हांगकांग से बाहर ले जाकर उन्हें प्रताड़ित करेगा तथा हांगकांग में लोकतंत्र का गला घोटने का काम करेगा। इस आंदोलन को देखते हुए चीन कुछ समय तो चुप रहा परंतु बाद में उसने इसे बलपूर्वक दबाने की कोशिश की जिसमें उसे असफलता मिलने के चलते चीन को आश्वासन देना पड़ा कि वह नया प्रत्यर्पण बिल वापस लेगा। परंतु आंदोलनकारियों की मांग है। कि वह नया प्रत्यर्पण बिल वापस लेने के साथ-साथ ही अंब्रेला मूवमेंट के दौरान गिरफ्तार किए गए आंदोलनकारियों को भी रिहा करें।

चीन पर अंतरराष्ट्रीय दबाव-
                                      चीन जो की हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है ।अर्थव्यवस्था, विज्ञान तकनीक परंतु वह राजनीतिक तौर पर अब भी आलोकतांत्रिक मानसिकता वाला ही है,जहां लोकतंत्र का कोई अस्तित्व नहीं माओ द्वारा स्थापित कम्युनिस्ट पार्टी ही सर्वोपरि है ।वहां एक दलीय शासन व्यवस्था है,चीन में कुल प्रांत प्रदेश व हॉन्ग कोंग मकाउ जैसे महानगर हांगकांग पूर्व में ब्रिटेन का उपनिवेश था, व मकाउ पुर्तगाल का परंतु चीन अपने विस्तार वादी नीति अपनाते हुए आक्रामक होता रहता है। हांगकांग के मामले में उसने अभी तक व्यापक बल प्रयोग नहीं किया जिसका कई कारण हो सकते हैं।अंतरराष्ट्रीय दबाव जहां अमेरिका और ब्रिटेन की ओर से चीन को स्पष्ट शब्दों में कहा गया,कि वह हांगकांग की स्वायत्तता वह लोकतंत्र पर प्रहार ना करें और चीन इसे अपना आंतरिक मामला बताकर सबको चुप कर देता है। दूसरी और भारत द्वारा कश्मीर में धारा 370 हटाने के मामले पर पाकिस्तान का साथ देने वाला केवल चीन ही था। वह इस मुद्दे को यूएनएससी मैं लेकर गया व इस पर एक बैठक बुलाई गई। परंतु चीन को यह याद रखना चाहिए कि हांगकांग की स्वायत्तता एक स्थाई संधि है, जो कि 1997 से 2047 तक हांगकांग के विदेश व रक्षा मामलों को छोड़ पूर्ण रूप से हांगकांग को स्वायतता प्रदान करती है। वहीं कश्मीर में धारा 370 एक अस्थाई प्रावधान था।अतः इन दोनों की तुलना नहीं की जा सकती इस प्रकार चीन ने कश्मीर मुद्दे को यूएनएससी में ले जाकर हांगकांग पर दोहरे मापदंड का परिचय दिया। एक और वह अमेरिका से व्यापार युद्ध में उलझा है, वह दक्षिण चीन सागर में भी आए दिन विवाद होते रहते हैं। ऐसे में चीन हांगकांग के मामले में सोच समझकर ही कोई कदम उठाएगा।

1 टिप्पणियाँ

और नया पुराने