मोह माया का त्याग .... और एक अंतर्विरोध !

 अंतर्विरोध


मोह माया का त्याग .... और एक अंतर्विरोध !

वह अपने बिस्तर से चुपचाप उठा अपने चारों ओर नजर घुमा कर देखा मंद प्रकाश फैलाए एक छोटा बल्ब चल रहा था। जिसकी मंद रोशनी एक नवजात बालक के पुष्प समान सुंदर काया पर पड़ रही थी, मानों किसी पुष्प पर हल्का सा प्रकाश पड़ने पर पुष्प खिल उठता है, मानो वह नवजात बालक भी उसी पुष्प के समान प्रतीत हो रहा था। एक स्त्री जो समीप ही सो रही थी उस बालक की मां है। एक मां जो अपने सोते हुए बालक की फिक्र इस प्रकार करती है, की उस स्त्री का हाथ बालक के सर के समीप था। जो नींद में ही अनायास उसके सर को सहलाने लगता। वह व्यक्ति यह सब देख सकपका जाता है, परंतु जल्द ही वह यह जान जाता है, कि वह स्त्री नींद में है। वह नींद में ही अपने बालक को सहला रही है। वह स्त्री कोई और नहीं उस व्यक्ति की धर्मपत्नी की है, और वह बालक उसका पुत्र। वह अपने पुत्र को निहारता है, सहसा उसकी आंखों से आंश्रु धारा बहने लगती है। अपनी पत्नी और पुत्र की मासूमियत देख वह अपना इरादा बदलने की सोचता है, परंतु अचानक वह संकल्प के साथ अपने आंसू पूछें हुए चुपचाप दरवाजा खोल कर बाहर निकलता है। अंतिम क्षण में एक झलक पाने के लिए वह पीछे मुड़कर देखने की चेष्टा करता है। अंतरात्मा कहती है, एक झलक और देख लेता हूं। परंतु दृढ़ संकल्प जो उसे पीछे नहीं देखने दे रहा था। एक क्षण के लिए वह रुका जरूर परंतु अचानक वह दरवाजा अटका कर चल दिया। आज तो निश्चय कर ही चुका था, किसी भी परिस्थिति में वापस नहीं लौटूंगा। कभी-कभी व्यक्ति अजीब अवस्था में होता है, कदम आगे बढ़ते हैं मन पीछे भागता है।


        मैंने क्या गलत किया क्या कसूर था मेरा यह सोचते  वाहपुरानी यादो मे खो जाता है।  आखिर सामाजिक परिवेश में मै नहीं ढल  सका बस यही गलती की परंतु  समाज की ऐसी व्यवस्था जो अपने बनाए नियमों में ही अंतर्विरोध उत्पन्न करती है। मैं कभी गलत काम नहीं करता, असत्य नहीं कहता, कर्म में विश्वास है मेरा , धन का तनिक भी लोभ नहीं, दूसरों के दुखों को अपने ऊपर लेना स्वयं फिर चाहे खुद को कितना ही कष्ट भोगना पड़े, परंतु अन्य किसी के आंखों से आंसू बहे यह मुझे पसंद नहीं। सामाजिक व्यवस्था का अंतर्विरोध यही है। सामान्यतः समाज में इन चीजों का महत्व है, परंतु व्यावहारिक रूप से अगर कोई व्यक्ति उत्तर नियमों का पालन करें तो वह मूर्ख व पागल कहलाता है। वह व्यक्ति इसी प्रकार की सोच विचार में आगे बढ़ता ही जा रहा था। अब आप के मन में भी प्रश्न उठ रहा होगा को है यह व्यक्ति। वह व्यक्ति भगत दास नाम का एक सज्जन व्यक्ति जो जीवन के कई उतार चड़व से गुजर चुका था। उसका परंतु आज वह निश्चय कर चुका था। सन्यास लेकर इस दुष्ट सामाजिक व्यवस्था का बहिष्कार करना चाहता था। भगतदास के अनुसार आखिर समाज में इतना भेदभाव क्यों है।
कहते हैं अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं होती अगर आप पूर्ण रूप से एक परिपक्व को अच्छे व्यक्ति हैं। आप में कोई दुर्गुण नहीं है, आप सत्य निष्ठ हैं तो यह आपके व्यवहार की अति है। यह समाज किसी भी प्रकार की आती को स्वीकार नहीं करता गहरी सोच में डूबा भगत दास आत्म कुंठा का शिकार हो रहा था। कभी उसके मन में विचार आता की सब सत्कर्मों की अति को त्याग कर वह मुख्यधारा में क्यों नहीं आ जाता , परंतु जिस प्रकार पंचतत्व अपना कार्य करना नहीं बंद करते। हमारी प्रकृति जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पंचातत्व का ही रूप है संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माण पंचतत्व से ही हुआ है। परंतु हमने हमारे पर्यावरण प्रकृति का विनाश कर क्या पंचतत्व का अपमान नहीं किया? फिर भी प्रकृति हमें माफ कर देती है, परंतु उसकी भी एक सीमा है। भगत दास फिर से एक अंतर्विरोध में फंस चुका था। आज वह बहुत ही भ्रमित था, क्योंकि प्रकृति का विनाश करने की सजा मनुष्य को समय समय पर मिलती रहती है। यही अंतर्विरोध मै  क्यों ना जैसे को तैसा जवाब दूं, क्यों ना मैं भी दुष्ट पापी को क्षमा करने के स्थान पर दंड दूं? परंतु गौतम बुद्ध ने तो यही सिखाया है क्षमा क्षमा दान करना जो पाप करते हैं,मूर्ख होते हैं उन्हें सही गलत का आभास नहीं जिस प्रकार कोई  बालक जिसे सांसारिक जीवन की समझ नहीं है, अनायास  ही कोई गलतियां कर दिया करता है।माता-पिता उसे डांटते नहीं देते अपितु उसके उस आचरण का आनंद भी भोगते हैं। परंतु वह बालक जो आयु में बहुत कम है। मूर्ख अज्ञानी मनुष्य वीर बालक समान होते हैं जो अपने शारीरिक अवस्था से विकसित या पूर्ण विकसित हो जाते हैं। परंतु मानसिक रूप से उनका विकास रुक जाता है माफ कर देना चाहिए इन मूर्ख पापी लोगों को।


भगत दास के मन में कई सवाल उठ रहे थे, वह अंतर्विरोध के जाल में फंसता जा रहा था। तो क्या ऐसे नादान नासमझ व्यक्तियों को क्षमा कर देना चाहिए? परंतु महाभारत में क्या हुआ। क्यों पांडवों ने अपने ही गौरव भाइयों का वध किया ? मैं यह नहीं कहता कि उन्होंने गलत किया परंतु अगर यह भी सत्य है तो असत्य क्या है? गौतम बुद्ध ने अहिंसा क्षमा का मार्ग जो हमारे लिए प्रशस्त किया है। क्या वह गलत है, या अधर्म का विनाश महत्वपूर्ण है? परंतु यह अधर्मी होते कौन है वही जड़ मूर्ख मानसिक रूप से विरक्त नासमझ यही अंतर्विरोध है। मैं क्या करूं , क्या करूं इन्हीं अंतर्विरोध के मायाजाल में भगत दास आगे बढ़ता जा रहा था। बिना अपने लक्ष्य को निर्धारित किया अचानक उसे एक कुटिया दिखाई थी, पूर्ण रूप से पर्ण कुटिया जिसमें एक महात्मा का वास है। कुटिया के समीप एक विशालकाय वृक्ष जिसके नीचे एक महात्मा समाधी में लीन थे।भगत दास के मन में विचार आता है, अत्यंत थकावट का अनुभव हो रहा है। इस कुटिया में थोड़ा विश्राम कर लिया जाए इस प्रकार की लालसा लिए भगत दास महात्मा के सम्मुख पहुंचा परंतु महात्मा को समाधि में लीन देख उसने महात्मा का समाधि से जागने का इंतजार करने लगा और नीचे ही वृक्ष की छाया में महात्मा के सम्मुख किसी शिष्य की भांति बैठ गया। कुछ समय पश्चात महात्मा अपनी समाधि से जाग गए। एकाएक उनकी नजर भगत दास पर पड़ी भगत दास ने उन्हें प्रणाम किया महात्मा ने आशीर्वाद की मुद्रा में अपने हाथ उठाएं। एक आश्चर्य का भाव अपने चेहरे पर लिए भगत दास की ओर देखने लगे अंतर्विरोध किसी के भी मन में उत्पन्न हो सकता था। महात्मा के मन में भी कुछ सवाल उत्पन्न हुए वह मन ही मन सोचने लग गया। आखिर यह व्यक्ति कौन है, यहां क्यों आया ?महात्मा ने पूछा कौन हो वत्स भगत दास ने अपना परिचय दिया। भगत दास तुम्हारे आने का क्या प्रयोजन है? अनायास ही महात्मा संकोच भरे स्वर व रहस्यमई दृष्टि से भगत दास से पूछा। अंततः भगतदास ने अपने आने का प्रयोजन बताया। महात्मा में सांसारिक जीवन से उब चुका हूं, और मैं मोक्ष के मार्ग की खोज हेतु सांसारिक जीवन का त्याग करके आया हूं। महात्मा मुझे अपना शिष्य स्वीकार कर मेरे मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कीजिए।
  

महात्मा ने कहा ठीक है, वत्स मैं तुम्हें अपना शिष्य बना लूंगा परंतु तुम्हें आश्रम के समस्त नियमों का पालन करना होगा। भगत दास बहुत प्रसन्नता पूर्वक महात्मा को प्रणाम करने लगा। वह धन्यवाद कहते उनके चरणों में गिर पड़ा महात्मा ने उसे कहा उठो जाओ स्नान कर आओ तत्पश्चात भोजन कार आराम कर लो संध्या काल में मैं तुम्हें आश्रम के नियम व कर्तव्य के बारे में विस्तृत रूप से बताऊंगा, तत्पश्चात प्रातः काले सूरज की पहली किरण के साथ तुम्हारी दीक्षा का कार्यक्रम आरंभ होगा।
भगत दास अत्यंत प्रसन्नता पूर्वक स्नान भोजन कार विश्राम करने चला गया। अनायास उसके मन में फिर उठने लगा द्वंद एक ऐसा द्वंद जिसमें उसके मन मस्तिष्क में पुनः अंतर्विरोध उत्पन्न कर दिया। उसके मन से अपने परिवार का मोह नहीं हट रहा था। रह रह कर अपने परिवार की याद आ रही थी, अजीब मन मस्तिष्क का द्वंद जो मनुष्य को सही निर्णय लेने में असहाय महसूस करता है। एक ही अंतर्विरोध की महात्मा बुद्ध ने भी तो अपने परिवार को निंद्रा की अवस्था में त्याग दिया था। मोक्ष के मार्ग व सत्य के मार्ग की खोज में चल दिए थे। जब वह गलत नहीं हो सकते तो मैं क्यों गलत हूं। सन्यास ही तो एक मार्ग है, सत्य की खोज का परंतु क्या मैंने कोई पाप किया एक स्त्री के साथ जिससे मैंने विवाह के समय वचन दिया था, कि मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूंगा। हां वचन मैंने दिया था, इसलिए नहीं कि मैं उस स्त्री से प्रेम करता था। अभी तो उसका जीवन जो घने दलदल में धंस चुका था। और वह पूरी तरह फंसकर अपने अंत की ओर अग्रसर हो रही थी। उसका ही जीवन नहीं  कई लोग उस घटना से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते थे। मेरी अंतरात्मा ने निश्चित किया गलतियां सबसे होती है, परंतु एक अवसर तो सभी को मिलना चाहिए अपनी गलती सुधारने का गलती कैसी गलती, गलती पाप कितना ही भयंकर या भयानक क्यों ना हो अगर कोई सच्चे मन से प्रायश्चित करना चाहे तो अपने मन या दिल से द्वेष को निकाल कर सत्य को समर्पित होकर अपना जीवन निर्वाह कर सकता है। फिर एक अंतर्विरोध दिल ने कहा किसी भी मनुष्य को हानि नहीं पहुंचाना चाहिए  तो उसे गौतम बुद्ध के मनुष्य जो भी करता है उसका हमारे शास्त्रों में लिखा है प्रत्येक कर्म का फल विज्ञान भावनाएं देखता है पाप नहीं कोई व्यक्ति चाहे तो दिल करता है जिसने वही सही गलत अपने में समाहित कर लिया हो अपना हक मत छोड़ना चाहते हो तो आप आपके सामने हार मान जाते हो आप क्या तो पापी को सजा मिलनी ही चाहिए फिर चाहे को रावण के नाम पर अपने माफ तो नहीं किया जा सकता अब आप करेंगे कि रावण का वध करता है मस्तिष्क सोचते सोचते समझ आता है कब जाता हो जाती है भक्तों को इसका आभास ही नहीं हो पाता के पश्चात मुद्दा में खड़ा हो जाता है महात्मा के मानव मस्तिष्क के अंतर्विरोध को भूल चुका था भगत दास की आरंभ हो चुकी थी परंतु परंतु हुए थे । 


परंतु भगत दास के मन में अब भी बहुत सारे प्रश्न थे इन महात्मा के पास उसके प्रश्नों के जवाब नहीं थे अतः आश्रम छोड़ कर आगे बढ़ जाता है।  कई दिनों तक यात्रा करते हुए वह एक जंगल में जाता है, जहां एक महात्मा जो कि एक बौद्ध भिक्षु थे तपस्या कर रहे थे। वह व्यक्ति उनके पास जाकर उनसे सत्य के मार्ग के बारे में पूछने लगा महात्मा ने उससे कहा वत्स तुम्हें सत्य के मार्ग खोजने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि सत्य का मार्ग तो महात्मा बुद्ध ने पहले ही खोज लिया। पहले तुम विस्तार से बताओ आखिर तुम यहां कैसे आए तब भगत दास ने उसे पूरी बात बताई  कि किस प्रकार वह अपनी पत्नी व बच्चे को छोड़कर  आया है। गौतम बुद्ध के मार्ग पर चलने के लिए बौध्द भिक्षु  ने उसे कहा यह तुमने अच्छा नहीं किया।  बुद्ध  पहले ही उस मार्ग को खोज  चुके हैं, तुम्हे उस मार्ग को खोजने नहीं जाना है, तुम्हें बस उन चीजों का ध्यान रखना है जिसके द्वारा सत्य खोज की जा सकती है, उसके लिए संन्यास की आवश्यकता नहीं तुम घर पर ही रह रहकर भी अपने अंतर्मन व अपने स्वयं के अंदर से उस सत्य को जान सकते हो। परन्तु  कुछ दिनों उनके साथ रहने के लिए उन से विनती करता है महात्मा ने भगत दास को अपने साथ आश्रम में रहने की इजाजत दे दी धीरे-धीरे भगत के मन से अब अंतर्विरोध दूर होने लगे थे।  एक दिन भगत दास एक पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान में लीन था।  वंहा  पास के गांव का गडरिया अपने पशुओं को चराने आता था ,तो उसने वहां देखा कि एक नवयुवक कई दिनों से तपस्या कर रहा है।  कहीं उनकी तपस्या भंग ना हो जाए इस डर से वह अपने पशुओं को दूर रखता था, उस समय वहां जाने से बचा था।  उसे डर था कि कहीं महात्मा की तपस्या भंग ना हो जाये  ,और  नाराज होकर उन्होंने श्राप दे दिया तो ! एक दिन हिम्मत करके वह उस महात्मा जो कि भगतदास ही था, के पास गया और उन्हें तपस्या में लीन देखकर उनके सामने बैठ गया आंखें खुलने का इंतजार करने लगा बहुत देर बाद जब आंखें खोली तो सामने गडरिया को देखकर आश्चर्यचकित हो गए ने उन्हें प्रणाम किया भगतदास  ने अपना हाथ उठाकर उसे आशीर्वाद दिया भगतदास ने  अभी तक  कुछ नहीं कहा कुछ देर पश्चात गड़रिये ने कहा महात्मा जी क्या मैं आपसे ज्ञान प्राप्त कर सकता हूं ?कहो क्या जानना चाहते हो जिज्ञासु प्रतीत होते हो। मैं भी जिज्ञासा वस अपने घर को त्याग कर आया हूं।  मैं जितना जानता हूं , मैं तुम्हें उतना बताऊंगा।  गड़रिये  ने कहा मैं कई दिनों से देख रहा हूं, कि आप इस वीरान जंगल में तपस्या कर रहे हैं।  इससे आपको क्या मिलेगा? इतना सुनते ही महात्मा भगत दास मुस्कुराया और कहा हमने सारी जीवन का त्याग कर दिया है। सन्यास  और तप द्वारा मोक्ष प्राप्त करना ही एकमात्र लक्ष्य है।  अहो भाग्य हमारे कि आप जैसे महात्मा के दर्शन प्राप्त हुए , कहते हुए गड़रिये ने पश्चात उसने पूछा क्या है, मनुष्य जन्म? जो मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।  जीसे किसी भी प्रकार का मोह  नहीं होता जो माया से भी मुक्त हो जाता है। भगतदास में  परन्तु  गडरिया कहता है ,यह मोह माया क्या है ? भगतदास गड़रिये  की ओर देख कर मुस्कुराते हुए कहते हैं जब आपके मन में किसी भी प्रकार से कुछ भी पाने की लालसा हो उसे मोह कहते हैं, और उसे प्राप्त करने के लिएजो भी  कृत्य किया जाता है, वह माया के अधीन आता है।  गडरिया भी सोचने लगता है, वह कहता है तो क्या आप मोह माया से मुक्त हैं ?महात्मा तत्काल कहते हैं, मैंने कई वर्षों से सांसारिक जीवन का त्याग  कर रखा है तथा मुझे किसी भी प्रकार का मोह नहीं है, मैं पूर्णता काम, क्रोध, मोह, और माया पर विजय प्राप्त कर चुका हूं। गडरिया कहता हे माफ़ कीजिए महाराज की लालच  ही है मतलब आपका  मोक्ष प्राप्ति का लक्ष भी तो मोह हे  , और मोक्ष प्राप्ति के लिए आप तपस्या के रूप में जो  रहे हैं क्या यह माया के अधीन नहीं है? गडरिया की बात सुनकर भगत दास एकाएक दृष्टि से उसकी ओर देखने लगता हे।  कुछ देर पश्चात अपना कमंडल उठाकर कुछ सोचते हुए वहां से चल दिया। गडरिया  महात्मा को पुकारते हुए महात्मा जी गांव का गडरिया हूं। मुझे क्षमा कर दीजिए उसे  लगा कि उसने कोई बहुत बड़ा पाप कर दिया है, जिससे महात्मा नाराज हो कर चल दिए।


 जिस अंतर्विरोध के कारण भगत दास अपने घर परिवार को त्याग कर सन्यास ग्रहण किया था, जिस सत्य की वह खोज करना चाहता था वह सत्य उसे गड़रिये के रूप में मिलेगा ऐसी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। कई महात्माओं से मिलने के पश्चात कई वर्षों की तपस्या के बाद एक गडरिया ने उसे सरल भाषा में यह बता दिया,कि आखिर मोह और माया क्या है? अब भगतदास समझ चुका था, कि जो परम सत्य है। वह केवल स्वयं के अंदर ही है और उस परम सत्य को खोजने के लिए कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं सांसारिक जीवन में रहकर भी उस सत्य तक पहुंचा जा सकता है। अब भगतदास यह बात समझ चुका था। उसने अपना कमंडल झाड़ियों के बीच पटका और बड़े-बड़े कदमों से अपने घर की ओर बढ़ चला कई वर्ष हो चुके थे मन में कई सवाल थे कि आखिर वह क्या जवाब देगा उसके पत्नी उसके बच्चे उसके मध्य में क्या सोचेंगे परंतु अब उसके मन में अंतर्विरोध नहीं था जो  पहले था।


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