भविष्य में यदि सांस लेने के भी पैसे देने पड़े तो?
प्रकृति से हमें हर चीज मुफ्त में मिली है, हमें क्या सभी जीव जंतुओं को प्रकृति ने इतना तो दिया है, कि वह आसानी से जीवन यापन कर सकें। वो तो हम मनुष्यों की, ही महत्वकांक्षाए थी, कि हम अपने जीवन स्तर को उच्च कोटि का बनाएं और तरह-तरह के आडंबर युक्त स्वांग रचा कर प्रकृति से खिलवाड़ करें। हो सकता है कि आप में से कई लोगों को मेरे शब्दों का चुनाव ठीक ना लगे तो चलिए समझते हैं, उस वास्तविक हकीकत को जिससे आप सब जान कर भी अंजान हो।
पेड़ और जंगल-
हम जिस सोसाइटी, समाज में रहते हैं। उसमें कई अवधारणाएं हैं समाजवाद,पूंजीवाद ,विकासवाद, प्रकृतिवाद। कहीं ना कहीं यह चारों एक दूसरे से संबंधित है, सामाजिक जीवन को सुगम बनाने के लिए विकास आवश्यक है।
हम जिस सोसाइटी, समाज में रहते हैं। उसमें कई अवधारणाएं हैं समाजवाद,पूंजीवाद ,विकासवाद, प्रकृतिवाद। कहीं ना कहीं यह चारों एक दूसरे से संबंधित है, सामाजिक जीवन को सुगम बनाने के लिए विकास आवश्यक है।
979 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के आंकड़े -
1979 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के डॉ. टी. एम. दासगुप्ता ने गणना करके बताया था कि 50 साल की अवधि में एक पेड़ का आर्थिक मूल्य 2,00,000 डॉलर (उस समय की कीमत के आधार पर) या 1 करोड़ 50 लाख भारतीय मुद्रा लगभग होता है। यहां जंहा दुनिया लाखों हेक्टेयर जंगलों को बर्बाद कर दिया गया और इनका मूल्य निकाला जाए तो यह अरबों अरब डॉलर से भी कई अधिक होगा।यह मूल्य इस अवधि में पेड़ों से प्राप्त ऑक्सीजन, फल या बायोमास और लकड़ी वगैरह की कीमत के आधार पर है। पेड़ के वज़न में एक ग्राम की वृद्धि हो, तो उस प्रक्रिया में पेड़ 2.66 ग्राम ऑक्सीजन बनाता है। ऑस्ट्रेलिया की नैन्सी बेकहम अपने शोध पत्र 'पेड़ों का वास्तविक मूल्यÓ में कहती हैं- पेड़-पौधे साल-दर-साल अपना दैनिक काम करते रहते हैं। ये मिट्टी को रोके रखते हैं, पोषक तत्वों का नवीनीकरण करते हैं, हवा को ठंडा करते हैं, हवा के वेग की उग्रता में बदलाव करते हैं, बारिश कराते हैं, विषैले पदार्थों को अवशोषित करते हैं, इंर्धन की लागत कम करते हैं, सीवेज को बेअसर करते हैं, संपत्ति की कीमत बढ़ाते हैं, पर्यटन बढ़ाते हैं, मनोरंजन को बढ़ावा देते हैं, तनाव कम करते हैं, स्वास्थ्य बेहतर करते हैं, खाद्य सामग्री उपलब्ध कराते हैं, औषधि और अन्य जीवों के लिए आवास देते हैं।
1979 में कलकत्ता विश्वविद्यालय के डॉ. टी. एम. दासगुप्ता ने गणना करके बताया था कि 50 साल की अवधि में एक पेड़ का आर्थिक मूल्य 2,00,000 डॉलर (उस समय की कीमत के आधार पर) या 1 करोड़ 50 लाख भारतीय मुद्रा लगभग होता है। यहां जंहा दुनिया लाखों हेक्टेयर जंगलों को बर्बाद कर दिया गया और इनका मूल्य निकाला जाए तो यह अरबों अरब डॉलर से भी कई अधिक होगा।यह मूल्य इस अवधि में पेड़ों से प्राप्त ऑक्सीजन, फल या बायोमास और लकड़ी वगैरह की कीमत के आधार पर है। पेड़ के वज़न में एक ग्राम की वृद्धि हो, तो उस प्रक्रिया में पेड़ 2.66 ग्राम ऑक्सीजन बनाता है। ऑस्ट्रेलिया की नैन्सी बेकहम अपने शोध पत्र 'पेड़ों का वास्तविक मूल्यÓ में कहती हैं- पेड़-पौधे साल-दर-साल अपना दैनिक काम करते रहते हैं। ये मिट्टी को रोके रखते हैं, पोषक तत्वों का नवीनीकरण करते हैं, हवा को ठंडा करते हैं, हवा के वेग की उग्रता में बदलाव करते हैं, बारिश कराते हैं, विषैले पदार्थों को अवशोषित करते हैं, इंर्धन की लागत कम करते हैं, सीवेज को बेअसर करते हैं, संपत्ति की कीमत बढ़ाते हैं, पर्यटन बढ़ाते हैं, मनोरंजन को बढ़ावा देते हैं, तनाव कम करते हैं, स्वास्थ्य बेहतर करते हैं, खाद्य सामग्री उपलब्ध कराते हैं, औषधि और अन्य जीवों के लिए आवास देते हैं।
इसी कड़ी में न्यूयॉर्क के पर्यावरण संरक्षण विभाग ने कुछ आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। ये बताते हैं-
(1) स्वस्थ पेड़ यानी स्वस्थ लोग-100 पेड़ प्रति वर्ष 53 टन कार्बन डाईऑक्साइड और 200 कि.ग्रा. अन्य वायु प्रदूषकों को हटाते हैं।
(2) स्वस्थ पेड़ यानी स्वस्थ समुदाय- पेड़ों से भरा परिवेश घरेलू हिंसा कम करता है, ये ज़्यादा सुरक्षित और मिलनसार समुदाय होते हैं।
(3) स्वस्थ पेड़ यानी स्वस्थ वातावरण- 100 बड़े पेड़ प्रति वर्ष 5,30,000 लीटर वर्षा जल थामते हैं।
(4) स्वस्थ पेड़ यानी घर में बचत- सुनियोजित तरीके से लगाए गए पेड़ एयर कंडीशनिंग लागत में 56 प्रतिशत तक बचत करते हैं। सर्दियों की ठंडी हवाओं को रोकते हैं जिससे कमरे में गर्माहट रखने के खर्च में 3 प्रतिशत तक बचत हो सकती है।

सांस लेने की कीमत -
पूरी दुनिया में कोरोनावायरस ने कहर बरपा रखा है जैसा कि हम सब जानते हैं कि कोरोना वायरस के लक्षण खांसी सांस लेने में तकलीफ निमोनिया और बुखार कैसे लक्षण है। कोरोना वायरस की वजह जो भी गंभीर मामले हैं उन लोगो को सांस लेने में तकलीफ होती है, स्वाभाविक है, कि अगर व्यक्ति सांस नहीं ले पाएगा तो उसे वेंटिलेटर की जरूरत होगी। दुनिया भर में इस समय वेंटिलेटर की कमी है। अमेरिका इटली फ्रांस जैसे विकसित देश भी अपने देश में मरीजों के लिए वेंटीलेटर की व्यवस्था नहीं कर पा रहे है। भारत में अभी तक स्थिति बिगड़ी नहीं है। अमेरिका में एक वेंटिलेटर का खर्च करीब 22 लाख है,और भारत में भी एक वेंटिलेटर करीब डेढ़ लाख रुपए तक में अभी बनाने का काम शुरू हुआ है, काफी इनोवेटिव ओर सस्ती दर पर फिर भी, मिलाकर हमें सांस लेने के लिए पैसे तो देने पड़ रहे हैं। वह अलग बात है कि यह बीमारी की वजह से हो रहा परंतु हमारी आंखें खोलने के लिए यह काफी है, आज हमारे पास शुद्ध हवा है फिर भी हमें उसकी परवाह नहीं जिस तरह से पेड़ काटे जा रहे हैं। आने वाले 20 से 30 साल में हर व्यक्ति को 1 वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ेगी समय है।हमें अपनी गलती सुधार लेनी चाहिए प्रकृति का संरक्षण करना बहुत ही आवश्यक है, वरना समस्या और भी गंभीर होगी भविष्य में।
पूरी दुनिया में कोरोनावायरस ने कहर बरपा रखा है जैसा कि हम सब जानते हैं कि कोरोना वायरस के लक्षण खांसी सांस लेने में तकलीफ निमोनिया और बुखार कैसे लक्षण है। कोरोना वायरस की वजह जो भी गंभीर मामले हैं उन लोगो को सांस लेने में तकलीफ होती है, स्वाभाविक है, कि अगर व्यक्ति सांस नहीं ले पाएगा तो उसे वेंटिलेटर की जरूरत होगी। दुनिया भर में इस समय वेंटिलेटर की कमी है। अमेरिका इटली फ्रांस जैसे विकसित देश भी अपने देश में मरीजों के लिए वेंटीलेटर की व्यवस्था नहीं कर पा रहे है। भारत में अभी तक स्थिति बिगड़ी नहीं है। अमेरिका में एक वेंटिलेटर का खर्च करीब 22 लाख है,और भारत में भी एक वेंटिलेटर करीब डेढ़ लाख रुपए तक में अभी बनाने का काम शुरू हुआ है, काफी इनोवेटिव ओर सस्ती दर पर फिर भी, मिलाकर हमें सांस लेने के लिए पैसे तो देने पड़ रहे हैं। वह अलग बात है कि यह बीमारी की वजह से हो रहा परंतु हमारी आंखें खोलने के लिए यह काफी है, आज हमारे पास शुद्ध हवा है फिर भी हमें उसकी परवाह नहीं जिस तरह से पेड़ काटे जा रहे हैं। आने वाले 20 से 30 साल में हर व्यक्ति को 1 वेंटिलेटर की आवश्यकता पड़ेगी समय है।हमें अपनी गलती सुधार लेनी चाहिए प्रकृति का संरक्षण करना बहुत ही आवश्यक है, वरना समस्या और भी गंभीर होगी भविष्य में।
लॉक डाउन से कितनी शुद्ध हुई हवा?-
लगभग पूरी दुनिया में लॉक डॉउन ऐसे में दिल्ली गुड़गांव जैसे शहर जो कि बहुत ही ज्यादा प्रदूषण वाले शहरों की गिनती में आते थे। अब वहां की हवा में ताजगी है, और सांस लेने लायक है। सीधी सी बात है , जहां पहले किसानों को पराली जलाने के कारण उसका दोष दिया जाता था वही आज है स्पष्ट है कि यह समस्या मानव निर्मित है और वह भी ट्रक ,यातायात, हवाई जहाज और फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषक तत्वों की वजह से ज्यादा थी। वक्त है, कि सरकार को हरित ऊर्जा के क्षेत्र में अप्रत्याशित पहल करने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं है, कि हमारे पास तकनीक नहीं है। परंतु उस तकनीक तक आम लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने का कार्य सरकार की जिम्मेदारी है। वैसे भी लॉक डाउन का पालन करना ही इस कोरोनावायरस को हराने के लिए हमारे द्वारा किया गया प्रयत्न काफी है। हमें हमारे घरों में रहना चाहिए तथा यह मौका है, प्रकृति के बारे में सोचने का ताकि जब जीवन पटरी पर आए तो हम प्रकृति संरक्षण के लिए कुछ कर सके। फिलहाल तो आज हम कोरोनावायरस से लड़ रहे हैं, और पूरी दुनिया में अमूमन हालत बहुत ही गंभीर है।
लगभग पूरी दुनिया में लॉक डॉउन ऐसे में दिल्ली गुड़गांव जैसे शहर जो कि बहुत ही ज्यादा प्रदूषण वाले शहरों की गिनती में आते थे। अब वहां की हवा में ताजगी है, और सांस लेने लायक है। सीधी सी बात है , जहां पहले किसानों को पराली जलाने के कारण उसका दोष दिया जाता था वही आज है स्पष्ट है कि यह समस्या मानव निर्मित है और वह भी ट्रक ,यातायात, हवाई जहाज और फैक्ट्रियों से निकलने वाले प्रदूषक तत्वों की वजह से ज्यादा थी। वक्त है, कि सरकार को हरित ऊर्जा के क्षेत्र में अप्रत्याशित पहल करने की आवश्यकता है। ऐसा नहीं है, कि हमारे पास तकनीक नहीं है। परंतु उस तकनीक तक आम लोगों की पहुंच सुनिश्चित करने का कार्य सरकार की जिम्मेदारी है। वैसे भी लॉक डाउन का पालन करना ही इस कोरोनावायरस को हराने के लिए हमारे द्वारा किया गया प्रयत्न काफी है। हमें हमारे घरों में रहना चाहिए तथा यह मौका है, प्रकृति के बारे में सोचने का ताकि जब जीवन पटरी पर आए तो हम प्रकृति संरक्षण के लिए कुछ कर सके। फिलहाल तो आज हम कोरोनावायरस से लड़ रहे हैं, और पूरी दुनिया में अमूमन हालत बहुत ही गंभीर है।
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Environment
Ham log nahi sambhles to yaha din bhi door nahi sir
जवाब देंहटाएंSahi he bhai kuchh karne sehi achcha hoga Varna sochne se kuchh nahi hoga.
जवाब देंहटाएंsahi baat hai Environment hi safe nahi rahega to jivan kese surakshit reh sakta
जवाब देंहटाएंagr asa hi chlta raha to jrur ventiletter ki jrurt pd skti h ..hr ek parson ko
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