21 दिनों का लॉक डाउन और 90 के दशक के रामायण महाभारत और शक्तिमान का मनोविज्ञानिक प्रभाव।


21 दिनों का लॉक डाउन और 90 के दशक के रामायण महाभारत और शक्तिमान का मनोविज्ञानिक प्रभाव।

मित्रों आज मैं सही गलत की बात नहीं करूंगा, आज मैं धर्म अधर्म की बात भी नहीं करूंगा। बात करते हैं, कि आखिर इन 21 दिनों में 80 और 90 के दशक के टीवी सीरियल दिखाने का मनोवैज्ञानिक तौर पर देश को क्या फायदा हो सकता है।
80 के दशक में रामानंद सागर की रामायण का पहला एपिसोड 25 जनवरी 1987 को दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ तथा अंतिम एपिसोड 31 जुलाई 1988 रामानंद सागर के रामायण में कुल 78 एपिसोड थे।




खैर यह बात तब की है जब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था। टीवी हर किसी के घर में नहीं हुआ करते थे धनाढ्य वर्ग के लोगों के घर टीवी हुआ करते थे। उस समय केवल एक ही चैनल चलता था, दूरदर्शन जहां पर सप्ताह में 1 दिन रामायण दिखाई जाती थी। कहते हैं, कि उस समय पूरे देश में में लगभग सन्नाटा परस जाता था। जब रामायण प्रसारित होती थी, सभी लोग ग्रुप में एक जगह इकट्ठे होकर देखते थे। महाभारत का पहला एपिसोड 2 अक्टूबर 1988 को प्रसारित हुआ था इसमें 24 एपिसोड थे। महाभारत जब श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था, वह गीता का ज्ञान का सार पूरा आध्यात्मिक है, वही अध्यात्म जिसमें ईश्वर को निराकार कहां गया है। भागवत गीता के कुछ अंश जिससे हम जीवन को सही अर्थों में समझ सकते हैं, बस शर्त ये है कि भागवत गीता को आंख बंद करके पढ़ने और अंधविश्वास का चश्मा उतार कर समझने की आवश्यकता है, तो ही वह ज्ञान सार्थक सिद्ध होगा अन्यथा केवल अंधविश्वास ही बढ़ाएगा।



कोरोना वायरस की दहशत के बीच दूरदर्शन पर सुबह 9:00 बजे और रात 9:00 बजे रामायण का प्रसारण तथा रोज रात 8:00 बजे शक्तिमान का प्रसारण ओर महाभारत के प्रसारण लोगों में उत्साह भी है।
रामानंद सागर की रामायण का कई बार प्रसारण हो चुका है। 90 के दशक के आखिर में भी इसका प्रसारण होता था, जब मैं बहुत छोटा था टीवी पर सप्ताह में 1 दिन रामायण महाभारत और शक्तिमान आते थे। रविवार का दिन 90 के दशक  के अंत तक किसी उत्सव से कम नहीं होता था जब हर किसी को इंतजार रहता था इन सभी टीवी सीरियल्स का क्योंकि उस समय दूरदर्शन का टीवी पर एकतरफा राज था। हम सप्ताह भर स्कूल जाते थे और केवल इंतजार करते थे रविवार का वह दिन किसी भी कीमत पर हमारे लिए बेशकीमती हुआ करता था। कुछ भी हो जाए परंतु शक्तिमान हम नहीं छोड़ सकते थे क्योंकि वह हमारा सुपर हीरो था शक्तिमान भारत का पहला सुपर हीरो।




मनोवैज्ञानिक तौर पर 90 के दशक के सीरियल्स का लाभ-
आज हमारे घर में चार पीढ़ियां रामायण देख रही है मेरी दादी मेरे पिताजी में और मेरा 3 साल का बच्चा बस बचपन की यादें ताजा हो गई जहां पिछले कई सालों से परिवार के साथ बैठने का समय नहीं मिलता था वहां रामायण महाभारत को साथ साथ देखना उन दिनों की याद दिला देता है। जब आधुनिक दुनिया की कल्पना नहीं थी ना कोई इंटरनेट ना कोई टेंशन ना कोई फिक्र। लोग अपना बचपन याद कर रहे अपने पुराने दिन याद कर रहे हैं,उस पर चर्चा कर रहे हैं। इन 21 दिनों में जब लोग अपने घरों में कैद है, ऐसे में लोगों को यदि अपने पुराने दिन याद करने का कोई बहाना मिल रहा है। तो इसमें कोई बुराई नहीं लोग पुराने दिनों को याद करके अच्छा महसूस कर रहे हैं, फिर चाहे वह रामायण महाभारत वह शक्तिमान के बहाने ही क्यों ना हो अब जहां हमें धर्म अधर्म के तर्क कुतर्क  से थोड़ा बाहर निकल के मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो 21 दिनों तक खुद के घर को जेल बनाकर रहना कहीं ना कहीं यह मानसिक तनाव का कारण बनता तो थोड़ा ही सही लेकिन पुराने दिनों को याद करके इस तनाव से थोड़ी मुक्ति मिलने में मदद हो सकती है।
मुझे अब भी याद है जब शक्तिमान का प्रसारण होता था हर रविवार दोपहर 12:00 बजे बात है, सड़के सुनसान हो जाया करती थी। बच्चों का एकमात्र उस समय का सुपर हीरो और पहला सुपर हीरो शक्तिमान था।  इसके मूल प्रसारण  13 सितंबर 1997 – मार्च 2005 तक में 400 से अधिक एपिसोड दिखाए गए मुकेश खन्ना मुख्य भूमिका में थे जो कि शक्तिमान के साथ साथ "पंडित गंगाधर विद्याधर मायाधर ओमकारनाथ शास्त्री" के एक बहुत ही फनी कैरेक्टर के रूप में दोहरी भूमिका निभाई।



              शक्तिमान की वह छोटी छोटी मगर मोती बातें आज भी हमारे दिल में बसी हुई है। क्योंकि हम शक्तिमान देखते हुए ही बड़े हुए हैं ,आज जब शक्तिमान का पहला एपिसोड देखा तो यकीनन मुझे पता ही नहीं चला कि मेरी उम्र क्या है मेरे दिमाग में वही बचपना घूम रहा था तो शायद आज से 20 साल पहले हुआ करता था। अपना बचपन याद आ रहा है, उस समय क्या-क्या चीजें थी और अब कितना बदलाव हो गया है । बहुत सारी चीजें अब नहीं है, परंतु बहुत सारी समस्याएं अब है, जो पहले नहीं थी यह सब चीजें सोचते-सोचते व्यक्ति भावनात्मक रूप से अपने परिवार से जुड़ाव महसूस करने लगता है। वही जुड़ाव जो आज से 20 साल पहले पारिवारिक माहौल में था। उस समय के साथ-साथ वह जुड़ाव कम होता गया फिर आज वह पुराने दिन याद आ गए फिर आज वह सुखद अनुभव महसूस होने लगा। हमेशा मैं यही सोचता था कि मैं क्या हर बच्चा यही सोचता था, कि मैं अगर मुसीबत में पड़ा तो शक्तिमान जरूर बचाने आएगा। अंधेरे में निकलते थे, तो डर लगता था कि कही सम्राट किल्विष ना आ जाए बीमार होते थे, तो जब पापा अस्पताल ले जाते थे और कहते थे डॉक्टर के पास जा रहे हैं डर लगता था कि कहीं यह डॉक्टर जैकाल तो नहीं है। जो भी हो पुराने दिन याद करके एक सकारात्मक उर्जा का अनुभव तो हो ही रहा है। य

                   
                        यकीनन कोरोना वायरस से लड़ने में हम घरों में कैद हैं, और उसके लिए एक सकारात्मक ऊर्जा की भी आवश्यकता थी, और वह ऊर्जा सकारात्मक सोच से ही मिल सकती थी। चाहे वह हम हमारा बचपन याद करके ही क्यों ना मिले। ना तो शक्तिमान सच में है, ओर ना किलविश हमें परेशान करने आएगा रामायण महाभारत से भी लोगों का भावनात्मक जुड़ाव है। पर कोरोना भी हारेगा और हम जीतेंगे आगे बढ़ेंगे, ऐसी परिस्थिति आज आई है, और आगे भी आती रहेगी। इनसे लड़ने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण आवश्यक है, पॉजिटिव एटिट्यूड हमें किसी भी चुनौती से निपटने में मदद कर सकता है।

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